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विश्वरंग में IAS ने सुनाई भारत-पाक बंटवारे की दास्तां:तरुण भटनागर ने मुलतान से आई दादी के दर्द पर लिखी कहानी

भोपाल6 महीने पहले
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राजधानी भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में विश्वरंग 2022 का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में देश भर के नामचीन साहित्यकारों और कलाप्रेमियों ने शिरकत की। रविवार को सीनियर आईएएस और लेखक तरुण भटनागर भी विश्वरंग के एक सत्र में शामिल हुए। लेखक से मिलिए के सत्र में तरुण भटनागर ने अपनी कहानियां और अब तक प्रकाशित 32 कृतियों के बारे में बताया। निवाड़ी जिले में बतौर कलेक्टर पदस्थ तरुण भटनागर ने दैनिक भास्कर एप से भी चर्चा कर अपने उपन्यास बेदावा और चर्चित कहानियों के बारे में बताया।

निवाड़ी जिले में बतौर कलेक्टर सेवाएं दे रहे तरुण भटनागर ने बताया कि मेरी एक कहानी ''दादी मुलतान टच एंड गो'' भारत-पाकिस्तान के बंटवारे पर आधारित है। उस कहानी को मैनें अपनी दादी द्वारा सुनाए गए किस्सों के आधार पर लिखा है। इस कहानी में दादी अपने मायके यानि पाकिस्तान के मुलतान शहर की स्मृतियों के बारे में बतातीं हैं और बंटवारे के बाद पैदा हुए हालातों को याद करके दुखी हाेती हैं। दादी के सामने एक नक्शा जब आता है उसमें भारत और पाकिस्तान के बीच एक लाइन बनी दिखती है। इस लाइन को देखकर जब दादी दुखी होतीं हैं तो पोता दादी की मनोदशा को समझते हुए कहता है कि मैं इस लाइन को मिटा दूंगा।

तरुण आगे कहते हैं कि मेरी दादी पाकिस्तान के मुलतान शहर की रहने वाली थीं उनकी ससुराल यानि मेरे दादा जी यूपी के बुलंदशहर के रहने वाले थे। दादी अक्सर अपने पाकिस्तान के मुलतान शहर में बिताए बचपन से लेकर शादी के पहले तक के दिनों के बारे में बतातीं रहतीं थीं। मुझे लगा कि हमारे यहां ये विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी हुई। ये कहा जाता है कि हमारे दौर का 19वीं सदी में सबसे बड़ा जनसंख्या स्थानांतरण हुआ था। हमारी यादों में वो विभाजन किस तरीके से है खासकर जिन बुजुर्गों को देखा और महसूस किया वो किस तरीके से देखते हैं। मेरी दादी पाकिस्तानी थीं। पाकिस्तान का एक शहर है मुलतान वो वहां की रहने वाली थीं। वो अक्सर मुलतान शहर का जिक्र करतीं थीं मैंने देखा कि विभाजन के प्रतिकार के बारे में वे हमेशा जिक्र किया करतीं थीं। उस लिहाज से मैंने दादी मुलतान टच एंड गो कहानी मैंने लिखी थी।

विश्वरंग कार्यक्रम में साहित्यकारों के साथ आईएएस तरुण भटनागर
विश्वरंग कार्यक्रम में साहित्यकारों के साथ आईएएस तरुण भटनागर

लेखन का पद और प्रोफेशन से ज्यादा लेना देना नहीं

तरुण भटनागर कहते हैं मेरा ये मानना है कि नौकरी और प्रोफेशन से लेखन का ज्यादा लेना-देना नहीं होता। लेखन बड़ी स्वतंत्र विधा है। तमाम विधाओं के लोग रचनाकार रहे हैं। मैं मूलत: कहानी और उपन्यास लिखता हूं। समाज में तमाम विसंगतियां हैं जिस तरह की व्यवस्था की हम लोग बात करते हैं वो हो नहीं पातीं तो लेखक लिखता है। लेखन में प्रेम, आपसी सौहाद्र पर लेखक अपनी कलम चलाता है। नौकरी का लेखन से कोई ज्यादा वास्ता नहीं हैं।

दिव्यांगों, थर्ड जेंडर सहित सभी प्रकार के प्रेम को परिभाषित करता उपन्यास लिखा

तरुण भटनागर ने बताया बेदावा नाम के उपन्यास को मैनें लिखा है। हम जो प्रेम को स्त्री पुरुष के बीच में देखते हैं लेकिन उसकी व्याप्ति बहुत ज्यादा है। जब हम किसी गरीब की मदद करते हैं या पीड़ित की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं तो वह भी प्रेम है। इसके आसपास एक कथा लिखने की मेरी इच्छा थी जो उपन्यास के रुप में सामने आ गई है। दिव्यांगों के बीच प्रेम, थर्ड जेंडर के बीच प्रेम की अपेक्षाएं, आकांक्षाएं भिन्न प्रकार की होती है। इन सबको लिखने की कोशिश की है। प्रेम के सभी प्रसंगों को इसमें एक सूत्र में पिरोने की कोशिश की है।