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डाउनलोड करेंखुद को ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त का सीनियर इंस्पेक्टर बताकर सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को छापे का डर दिखाकर उनसे रकम वसूलने वाले एक शातिर जालसाज, उसके बेटे और साथी को ईओडब्ल्यू की टीम ने भोपाल से गिरफ्तार किया है। आरोपियों पर 10 हजार रुपए का इनाम था। इन पर ईओडब्ल्यू की रीवा यूनिट ने धोखाधड़ी और अड़ीबाजी का मामला दर्ज किया था। यह धोखेबाज अब तक लगभग 10 लाख रुपए अपने खातों में ट्रांसफर करा चुके हैं।
ईओडब्ल्यू के मुताबिक मूलत: तिलक नगर, रीवा निवासी संजय मिश्रा इस गिरोह का सरगना है। जल संसाधन विभाग के जयकिशन द्विवेदी ने जुलाई 2021 में संजय के खाते में एक लाख रुपए जमा कराए थे। इसी प्रकार उचहेरा, सतना के रेंजर रामनरेश साकेत से 50 हजार रुपए खाते में जमा करने को कहा था, लेकिन उन्होंने जमा नहीं किए। जल संसाधन विभाग, सागर के उपयंत्री कालीचरण दुबे ने भी 25 हजार रुपए उसके खाते में जमा नहीं किए थे।
दुबे की शिकायत पर 2 सितंबर को ईओडब्ल्यू रीवा ने एफआईआर दर्ज की थी। इसके बाद संजय अपने बेटे आष्कृत के साथ रीवा से भागकर भोपाल के टीटी नगर क्षेत्र में रहने लगा। यहां उसकी पहचान पन्ना निवासी रघुराजा उर्फ राहुल गर्ग से हो गई, फिर उसके खाते में रकम जमा कराने लगा। इसके लिए रघुराजा को 10% कमीशन देते थे।
चालबाजी ऐसी- इंस्पेक्टर शर्मा के नाम से ट्रूकाॅलर पर आता था नंबर
संजय मिश्रा का मोबाइल नंबर ट्रूकाॅलर पर इंस्पेक्टर ईओडब्ल्यू डीपी शर्मा के नाम से सामने आता था। ईओडब्लू ने तीनों आरोपियों संजय मिश्रा (49), आष्कृत मिश्रा (21) और रघुराजा गर्ग को टीटी नगर से गिरफ्तार कर लिया है। उसने पंचायत विभाग, सहकारिता विभाग, राजस्व विभाग, जल संसाधन, खनिज विभाग, एमपीईबी के अधिकारियों से पिछले कुछ महीनों में रकम वसूली है।
एफआईआर हुई तो छोड़ दिया था रीवा
ईओडब्ल्यू ने 2 सितंबर को संजय मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उसका बैंक खाता फ्रीज करा दिया था। भोपाल आने पर संजय के बेटे की दोस्ती टीटी नगर स्थित एक होटल के मैनेजर रघुराजा से हुई। पिता-पुत्र कमीशन का लालच देकर उसके खाते में रकम बुलाने लगे। जांच के दौरान ईओडब्ल्यू को पता चला कि रकम रघुराजा के खाते में बुलाई जा रही है। इसके बाद टीम ने रघुराजा को दबोचा, फिर संजय व आष्कृत को पकड़ लिया। संजय से कई सिम बरामद की हैं।
वेबसाइट सर्च कर निकालते थे नंबर
रीवा ईओडब्ल्यू एसपी वीरेंद्र जैन के अनुसार संजय समाचार पत्रों में ऐसे समाचार देखता था, जिसमें किसी अधिकारी या कर्मचारी पर विभागीय जांच या अन्य एजेंसी द्वारा जांच का जिक्र होता था। इसके बाद वह उन्हें छापे का डर दिखाकर रुपयों की डिमांड करता था। वह विभागों की वेबसाइट सर्च कर वहां से उनके नंबर लेकर काॅल करते।
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