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डाउनलोड करेंआज जायका में पढ़िए दाल-पानिये...। यह निमाड़ की फेमस डिश है। इसका स्वाद मालवा के शहर भी खूब लेते हैं। आदिवासी अंचल की यह डिश दाल-बाफले की तरह है, लेकिन इसमें गेहूं की जगह मक्के का आटा उपयोग किया जाता है। कभी आदिवासी इसे अभाव के दिनों में मजबूरी में बनाते थे, लेकिन आज यह डिश बड़े-बड़े होटल के मैन्यू में शुमार हो गई है। इसकी शुरुआत कब से हुई यह तो नहीं पता, लेकिन इतनी जानकारी जरूर है कि जब से आदिवासी हैं और मक्का खाया जा रहा है, तभी से यह बनाई जा रही है।
इमली व गुड़ की मिठास से दाल देती है खास स्वाद
इसके साथ खाई जाने वाली दाल तुअर (अरहर) की होती है। इसमें इमली और गुड़ भी डाला जाता है। इससे दाल का टेस्ट खट्टा-मीठा हो जाता है। दाल के बघार में अन्य मसाले भी डाले जाते हैं। कुछ लोग पानिये के साथ उड़द और चने की मिली-जुली दाल भी बनाते हैं, लेकिन उसमें गुड़ व इमली नहीं होती। यह दाल चटपटी होती है, जिसमें प्याज, लहसुन, हरी मिर्च का तड़का लगा होता है। दाल-पानिये के साथ लहसुन और लाल मिर्च की तीखी चटनी भी परोसी जाती है। पानिये के साथ खाई जाने वाली कढ़ी का भी अपना अलग टेस्ट है, जो ताजे छाछ या दही से बनाई जाती है।
जब दाल-बाटी नहीं बिकी तो पानिये बेचना शुरू किए
बड़वानी बायपास स्थित सुगंधि ढाबा दाल-पानिये को लेकर फेमस है। बड़वानी जिला महाराष्ट्र और गुजरात से लगा है। इस कारण इन दोनों राज्यों में दाल-पानिये के पार्सल खूब जाते हैं। संचालक रवि सुगंधि बताते हैं कि 1986 में उनके पापा महेंद्र सुगंधि ने यह कार्य चालू किया, जिसमें सिर्फ दाल-बाटी ही बनाते थे, लेकिन कुछ ज्यादा बिक्री नहीं होती थी। फिर पिता को उनके दोस्तों ने सलाह दी कि आप दाल-पानिये को ट्राय करो। पिताजी ने ऐसा ही किया। आज हमारा ढाबा बड़वानी ही नहीं आसपास के राज्यों में पानिये के लिए मशहूर हाे चुका है।
निमाड़ के सभी प्रमुख जिलों में मिलती है यह डिश
बड़वानी, धार, खरगोन, झाबुआ, आलीराजपुर में यह प्रमुख तौर पर आप को मिल जाएगी। खास तौर पर यह झाबुआ, आलीराजपुर और बड़वानी के होटल और ढाबों पर प्रमुख रूप से और मिलती है। घरों से निकल यह डिश होटल में 2010 में सुगंधि ढाबे से शुरू हुई। इसके बाद बड़वानी और आसपास के जिलों में कई ढाबे और होटलों के मैन्यू में दाल-पानिये को शामिल कर लिया गया है।
हजम करने में आसान
लोगों के पसंद करने का एक कारण पानिये का जल्दी हजम हो जाना है। बड़वानी के डॉ. जितेंद्र चौधरी ने बताया कि पानिये में मक्का का आटा होता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट और ऊर्जा भरपूर होने के साथ, फाइबर भी उपयुक्त मात्रा में होता है। मक्के का आटा मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत है, जो एक स्वस्थ दिल की धड़कन और सामान्य रक्तचाप को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
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नागौर से इंदौर आए नुस्खे से बनी इंदौरी शिकंजी
इंदौर के सराफा में नागौरी की शिकंजी...। इसका नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाएगा। नींबू, मसाला नहीं, बल्कि इसका अलग ही टेस्ट और क्रेज है। इसकी डिमांड हर सीजन में रहती है। ये शिकंजी दही, केसर, किशमिश और इलायची से बनती है। यह कभी सिर्फ घरेलू आइटम हुआ करती थी। दादी का यह नुस्खा कैसे राजस्थान के नागौर से इंदौर आया और कैसे यहां सबसे टेस्टी शिकंजी बन गया। वैसे सराफा रात के टेस्ट के लिए फेमस है, लेकिन यह शिकंजी आपको सिर्फ दिन में मिलेगी। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...
मुरैना की गजक; चंबल का पानी इसे बनाता है खास
पूरे देश में मुरैना 2 चीजों के लिए मशहूर हैं। पहली चंबल के डाकू, दूसरी गजक। इन दिनों दोनों चर्चा में हैं। डकैत गुड्डा गुर्जर को हाल ही में गिरफ्तार किया गया है। उधर, सर्दी आने से गजक की डिमांड बढ़ गई है। करीब 50 साल पहले वजूद में आई गजक यहां के लोक संस्कार की देन है। करीब 200 करोड़ रुपए सालाना का कारोबार होता है। अमेरिका, इंग्लैंड, दुबई, फ्रांस सहित कई पश्चिमी देशों में गजक के दीवाने हैं। यही कारण है कि पूरी दुनिया में इसका एक्सपोर्ट होता है। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...
शुद्ध दूध की मलाई से बनती है खुरचन
खुरचन... यह पढ़कर आपको लगेगा कि यह किसी चीज को जलाने के बाद खुरच-खुरचकर बनाई जाने वाली कोई मिठाई है, लेकिन ऐसा नहीं है। इसका सिर्फ नाम ही खुरचन है। यह मिठाई शुद्ध दूध की मलाई से बनाई जाती है। मलाई की कई परतें जमने से मखमली सी दिखने वाली यह मिठाई मप्र की प्रसिद्ध मिठाइयों में से एक है। बात हो रही सतना के रामपुर बाघेलान की 'खुरचन' की। यह मिठाई यहां 80 साल पहले अस्तित्व में आई थी। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
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