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डाउनलोड करेंरायपुर के कुछ युवाओं ने मिलकर एक ऐसा प्रयास किया जिसे एक परिवार जिंदगी भर न भूले। बीते दो सालों से ओडिशा बॉर्डर के गांव और देवभोग में भीख मांगकर गुजारा करने वाले बंगाल के एक घायल शख्स को अपनों से मिलवाया गया। जब उसने घर वालों को देखा तो उदास चेहरे पर एक मुस्कान दो साल बाद लौटी, शुक्रिया कहने के अंदाज में दोनों हाथ जुड़ गए।
पूरा मामला कोरोना की पहली लहर में हो रहे श्रमिकों के पलायन से जुड़ा है। बंगाल के मजदूर अशोक भी तब ट्रेन से सफर कर रहे थे। महाराष्ट्र के पास किसी ने धक्का देकर पटरियों पर फेंक दिया। सिर और पैर में गंभीर चोटें आईं। हादसे की वजह से सहमे अशोक को ठीक से याद नहीं, मगर कुछ गांव वाले उन्हें सरकारी अस्पताल ले गए, वहां कुछ दिन प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें छोड़ दिया गया। लॉकडाउन था कोई कहीं आ-जा नहीं सकता था। हादसे की वजह से डिप्रेशन में जा चुके अशोक भीख मांगकर गुजारा करने लगे। किसी ने ट्राइसाइकिल दान में दे दी थी।
इधर पैर का जख्म और गहरा होता जा रहा था। ट्राइसाइकिल गांव-गांव भटकते हुए ये ओडिशा के रास्ते देवभोग पहुंचे। करीब डेढ़ साल यहीं भीख मांगकर गुजारा कर रहे थे। 17 जून को देवभोग में रहने वाले शुभम भटनागर नाम के युवक की इनपर नजर पड़ी। शुभम ने देखा कि अशोक का पैर सड़ रहा था, जख्म पर कीड़े लगे हुए थे। पूछताछ करने पर बांग्ला और टूटी-फूटी हिंदी में अशोक ने अपना नाम और हादसे के बारे शुभम को बताया।
इसकी जानकारी मनोवैज्ञानिक औषविधि सेवा संस्था के संदीप को मिली। ये संस्था बेसहारा लोगों की मदद का काम करती है। गरियाबंद के रहने वाले गौरीशंकर कश्यप की मदद से एंबुलेंस का बंदोबस्त करके अशोक को अंबेडकर अस्पताल पहुंचाया। यहां संस्था की अर्चना सिंह ने चिकित्सकों से बात की। युवाओं की इस टीम ने अंबेडकर अस्पताल के डॉक्टर्स से कहा कि अशोक के पास कोई आधार कार्ड, कोई रिश्तेदार नहीं है, आप इनका इलाज करें, हमारी संस्था ही इनकी जिम्मेदारी लेती है।
पुराने दर्द से राहत
संदीप ने बताया कि अंबेडकर अस्पताल के डॉक्टर्स ने सर्जरी की। कीड़ों को साफ किया। जख्म में पस भर चुका था उसे हटाया गया। स्क्रीन को ट्रीट किया। मरहम पट्टी की गई। संस्था के युवा इस बीच अशोक से बातें करने लगे। हर कोई इस कोशिश में था कि अशोक के घर परिवार के बारे में कुछ पता लगे। मगर वो बांग्ला में जो कुछ कहते किसी की समझ नहीं आ रहा था।
महिला गार्ड ने समझी भाषा
अंबेडकर अस्पताल की महिला सिक्योरिटी गार्ड अशोक की बातें समझ रहीं थीं, उन्हें बंग्ला समझ आती थी। अशोक कह रहे थे, उनका घर बंगाल के मलिकपुर में रेलवे स्टेशन के पास किसी लोहा फैक्ट्री के पास है। इसके बाद संस्था के वैभव नाम के युवक ने इंटरनेट की मदद से बंगाल पुलिस के मलिकपुर स्टेशन में संपर्क किया। वॉट्सऐप पर अशोक की फोटो भेजी गई, वहां अशोक के परिजनों ने पहले ही मिसिंग कंप्लेन की थी। अशोक का रिकॉर्ड बंगाल पुलिस को मिल गया। अशोक के परिजनों तक खबर पहुंची। फोन पर अशोक की बात करवाई गई। अब अशोक के घर वाले रायपुर आकर उन्हें साथ ले गए।
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