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डाउनलोड करेंइंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने ऐसी खोज की है जिसके जरिए भविष्य में क्लाइमेंट चेंज की वजह से खाद्यान्नों की कमी को पूरा कर जनता को भोजन उपलब्ध कराने में मदद करने वाली फसलों की जानकारी मिल सकेगी।
साथ ही कुटकी का अत्यंत संवेदनशील तकनीकी ट्रांसक्रिप ग्रेम सिक्वेंसिंग द्वारा अध्ययन व रिसर्च कर नए जींस खोज निकाले हैं। यह जिंस उसे सबसे ज्यादा आयरन देने वाली फसलों में सबसे आगे खड़ा करते हैं। इस वजह से दुनिया में आयरन को लेकर कोई भी रिसर्च करना चाहेगा, तो क्लिक करते ही उसके सामने छत्तीसगढ़ का नक्शा आ जाएगा।
वैज्ञानिकों का दावा है कि इस डेटा का उपयोग विभिन्न फसल सुधार कार्यक्रमों जैसे जलवायु परिवर्तन से अप्रभावित फसलों का विकास किया जा सकेगा। साथ ही पोषक तत्वों से भरपूर फसलें तैयार की जा सकेगी। यह फसलें भविष्य में इंसान की सभी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता रखती है।
वर्तमान में इस डेटाबेस का उपयोग आईजीकेवी के वैज्ञानिकों द्वारा लघु धान्य फसलों अन्य धान्य फसलों के सुधार के लिए किया जा रहा है। विशेष बात यह है कि आईजीकेवी ने भारत सरकार के साइंस एवं टेक्नालॉजी मंत्रालय से इसका पेटेंट करा लिया है। पेटेंट से पहले संबंधित मंत्रालय की टीम ने यहां आकर एक्जामिन भी किया है।
वैज्ञानिकों ने यह दावा भी किया है कि यह डेटाबेस शोधकर्ताओं को फसल के आणविक विश्लेषण एवं संरचना के गहन अध्ययन में अत्यंत उपयोगी साबित होंगे। इस बारे में उनके विशेष उद्देश्यों को पूरा करने में सहायता करेंगे। इस शोध व डेटा बेस से प्राप्त जानकारी का उपयोग पोषण गुणवत्ता बढ़ाने एवं जेडई, जेडएन तथा अजैविन तनाव के लिए सहनशील जीनों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। डेटाबेस से डेटा पंजीकरण करके आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
इस तरह किया रिसर्च
लिटिल मिलेट यानी कुटकी ट्रांसकिप्टोम डेटाबेस भारत में कुटकी के लिए बनाया गया। यह खास और अपनी तरह का पहला डेटाबेस है। कुटकी जलवायु अनुरूप आयरन और जिंक से पोषक पदार्थों से भरपूर कुपोषण की समस्या से निजात दिलाने वाली फसल के रूप में बस्तर जिले की महत्वपूर्ण फसल है।
कुटकी में इन सभी गुणों को नियंत्रित एवं अभिव्यक्त करने वाले जिंस मिलते हैं। वे इस फसल को विशेष बनाते हैं। ऐसे ही जिनों का पता लगाने तथा अन्य फसलों में सुधार करने के लिए आईजीकेवी के कुलपति डॉ. गिरिश चंदेल के नेतृत्व में अनुभवी वैज्ञानिकों ने कुटकी का अत्यंत संवेदनशील तकनीकी ट्रांसक्रिप ग्रेम सिक्वेंसिंग द्वारा अध्ययन कर रिसर्च किया। चार-पांच साल के शोध के बाद यह सामने आया कि कुटकी के विशिष्ट जींस एवं उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य, विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्त होने वाले जींस तथा मॉलक्यूलर पाथवे निहित हैं। इस सारी जानकारी व डेटा का उपयोग करके एलएमटीडीबी डेटाबेस बनाया गया है।
खोज से फायदे
इस नई डिस्कवरी का हमने पेटेंट करा लिया है। रिसर्च में करीब साढ़े चार-पांच साल लगे। हम सौभाग्यशाली है कि बस्तर की कुटकी की वजह से छत्तीसगढ़ विश्व के नक्शे पर है। दुनिया को यह भी पता चल रहा है कि छत्तीसगढ़ में ऐसी संस्थाएं जो हाईलेवल पर क्लाइमेंट चेंज पर शोध कर रही हैं। साइंस, टेक्नालॉजी व रिसर्च पर काम करने वाले लोग यहां से मदद ले सकते हैं।
डॉ. गिरिश चंदेल, कुलपति आईजी केवी
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