पाएं अपने शहर की ताज़ा ख़बरें और फ्री ई-पेपर
डाउनलोड करेंशहीद-ए-आजम भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह के बेटे किरणजीत सिंह संधू रायपुर पहुंचे। तिरंगा वंदन मंच की तरफ से आयोजित स्वतंत्रता का महोत्सव कार्यक्रम में उन्होंने रायपुर वासियों से मुलाकात की। उन्होंने समाज में अच्छा काम कर रही संस्थाओं का सम्मान भी किया। इस दौरान संधू ने भगत सिंह के जीवन से जुड़े उन किस्सों को दैनिक भास्कर के साथ साझा किया, जिनका जिक्र कम ही होता है।
परिवार क्यों दुखी है ?
आज भगत सिंह का परिवार क्यों दुखी है, क्या हुआ था भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के शवों के साथ, इन सभी मुद्दों पर उन्होंने सच बयान किया। जिसे जान आप भी हैरान रह जाएंगे। सहारनपुर में रहने वाले किरणजीत सिंह संधू ने बताया कि भगत सिंह को फांसी तय तारीख 24 मार्च से एक दिन पहले ही शाम को दे दी गई। जबकि ऐसा इतिहास में कभी नहीं हुआ था।
शव के टुकड़े आर्मी की ट्रक में रखा
फांसी के बाद 23 मार्च की शाम को उनके पार्थिव शरीर परिवार को नहीं दिए गए। संधू ने बताया कि शव के टुकड़े करके उसे आर्मी की ट्रक में रखा गया। इसके बाद जेल की पिछली दीवार तोड़कर लाहौर से फिरोजपुर ले जाया गया। ये खबर जब लोगों को पता चली, तो फिरोजपुर से हजारों लोग मशालें लेकर उस जगह जाने लगे, जहां अंग्रेज शहीदों के शव के टुकड़े बोरी में लेकर आए थे।
अंग्रेजों ने शवों के अवशेष जला दिए
सतलुज नदी के किनारे वो जगह आज हुसैनीवाला (पाकिस्तान) में आती है। वहां अंग्रेजों ने शवों के अवशेष जला दिए। जब अंग्रेजों ने लोगों की भीड़ को आते देखा, तो अधजली लाशों को नदी में प्रवाहित कर दिया और भाग गए। नदी के किनारे रेत पर जलती लाशों के कुछ अवशेषों के ठंडा होने का इंतजार लोगों ने किया। इसके बाद अगली सुबह रावी नदी के किनारे लाहौर में लाकर उनका अंतिम संस्कार किया गया।
भगत सिंह के भतीजे किरणजीत सिंह संधू ने कहा कि भगत सिंह और उनके साथियों ने अपना तन-मन-धन देश पर न्योछावर कर दिया, अब हमारी जिम्मेदारी है कि उनके सपनों को पूरा करें। उन्होंने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के तहत लोगों में राष्ट्रीय भावना का संचार हो रहा है, ये अच्छी बात है।
आज भगत होते तो...
अगर आज भगत सिंह हाेते तो देश के हालात को लेकर क्या करते ? इस सवाल के जवाब में किरणजीत सिंह संधू ने बताया कि इसकी तो कल्पना ही की जा सकती है। उनकी भावना यही थी कि इस समाज में गरीब और अमीर के बीच बड़ा फर्क न हो। बराबरी का समाज हो। भगत सिंह सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जातिवाद के खिलाफ थे। निश्चित ही वो होते तो एक आंदोलन को जन्म देते, जिसके जरिए इन बुराईयों से लड़ा जाता।
पाकिस्तान में भगत सिंह
पाकिस्तान में भगत सिंह से जुड़ी कुछ यादें आज भी हैं। किरणजीत ने बताया कि वहां उनके मुकदमे के कागजात हैं और स्मारक भी है। भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। वहीं उन्हें फांसी लाहौर सेंट्रल जेल में हुई। उन्होंने कहा कि वहां शादमान चौक के नाम से एक चौक हुआ करता था। उसका नाम बदलकर शहीद भगत सिंह चौक किया गया है। वहां भी भगत सिंह के दीवाने हैं।
किरणजीत सिंह संधू ने कहा कि मैं 23 मार्च 2004 को वहां गया, जहां फांसी हुई थी। लाहौर के उस हिस्से में पाकिस्तानी युवा भगत सिंह की शहादत को याद करते हुए नारे लगा रहे थे। भगत सिंह और उनके साथी सरहद के इस पार भी जिंदा हैं और सरहद के उस पार भी। भगत सिंह का बलिदान तो पूरे हिंदुस्तान के लिए था, उस वक्त उसमें बांग्लादेश और पाकिस्तान भी शामिल थे। उन्होंने सभी भाषाओं और धर्म को मानने वालों के लिए कुर्बानी दी थी।
वो आखिरी खत
जब भगत सिंह जेल में थे, तब किरणजीत के पिता कुलतार सिंह की उम्र बमुश्किल 10-12 साल थी। वो जेल में अक्सर भगत सिंह से मिलने जाते थे। एक बार कुलतार सिंह ने भगत सिंह से कहा था कि वो स्कूल में पास हो गए, तो उन्होंने कहा था 'रसगुल्ले खिलाओगे तो मानूंगा कि पास हुए हो'। अगली मुलाकात में पिता जी उनके लिए रसगुल्ले लेकर गए, उसे खाकर भगत सिंह बोले अब लगा कि कुलतार स्कूल में पास हुआ है।
किरणजीत सिंह बताते हैं कि चाचा की शहादत से कुछ वक्त पहले जब उनके पिता कुलतार जेल में बंद भगत सिंह से मिलने गए, तो उनकी हालत देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए। इस पर चाचा ने उनसे कहा कि वे आंसू व्यर्थ बहाने के बजाए ऊर्जा बचाकर रखें, क्योंकि उनके बलिदान के बाद क्रांति की मशाल जलाए रखने की जिम्मेदारी अगली पीढ़ी की होगी। भगत सिंह ने छोटे भाई कुलतार के नाम एक चिट्ठी में लिखा-
''अजीज कुलतार, तुम्हारी आंखों में आंसू देखकर दुख हुआ। हौसले से रहना, शिक्षा ग्रहण करना, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और क्या कहूं। इसके बाद उन्होंने पत्र में चार शेर लिखे और अंत में लिखा... खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं... तुम्हारा भाई भगत सिंह।''
पत्र में लिखे शेर
उसे फिक्र है हरदम नया तर्जे जफा क्या है।
हमें ये शौक है देखें सितम की इंतहां क्या है।
(अंग्रेजों की ओर इशारा करते हुए भगत सिंह लिखते हैं वो इस चिंता में हैं कि हमें कैसे यातनाएं दें, हमें ये देखने का शौक है कि वो हमें कितनी यातनाएं दे सकते हैं)
दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें सारा जहां अदू सही आओ मुकाबला करें। (हम क्यों शिकायत करें किसी खराबी की हौसला हिम्मत है तो हिमालय की परेशानी से टकरा जाएंगे)
कोई दम का महमा हूं अहले महफिल चिराग ए सहर हूं बुझना चाहता हूं। (मैं सुबह की दीपक की तरह हूं जब दिन निकलेगा दीपक बुझ जाएगा)
मेरी हवा में रहेगी ख्याल की बिजली ये मुश्त ए खाक है फानी रहे ना रहे। (मेरे विचार हमेशा रहेंगे ये मिट्टी का शरीर रहे न हरे, पीढ़ियों को प्रेरित करेंगे जैसे बादलों से बिजली निकलती है )
खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं....
नोट पर फोटो और शहीद का दर्जा
किरणजीत सिंह संधू ने कहा कि भगत सिंह को आज भी संवैधानिक तौर पर शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है। वो करोड़ों लोगों के शहीद-ए-आजम हैं। नोट पर भगत सिंह का फोटो लगाने को लेकर हुए आंदोलन को लेकर उन्होंने कहा कि ये तो सरकारों के ऊपर है। मगर लोगों के दिलों में भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव का फोटो बसता है। उनके विचार आज भी प्रेरणा देते हैं कि कैसा समाज हमें बनाना है। भगत सिंह को पता था कि उन्हें भी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना है, शहीद होना पड़ेगा। देश के लिए शहीद भी हुए, लेकिन अभी तक संविधान में उन्हें शहीद का दर्जा नहीं मिला, ये बहुत दुख की बात है।
खटकड़कलां में भगत सिंह का पैतृक निवास
भारत के पंजाब के गांव खटकड़कलां में शहीद-ए-आजम भगत सिंह का पैतृक निवास है। खटकड़कलां गांव फगवाड़ा-रोपड़ नेशनल हाईवे पर उपमंडल बंगा से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। देश के बंटवारे के बाद भगत सिंह की मां विद्यावती और पिता किशन सिंह यहीं आकर रहने लगे थे। किशन सिंह की यहां आने के बाद मौत हो गई थी, जबकि भगत सिंह की मां विद्यावती वर्ष 1975 तक यहीं रहीं।
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.