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डाउनलोड करेंपर्यावरण को बचाने के लिए जल्द ही देश के बाजार में पत्तों से बने बर्तन दिखाई देंगे। माहुल के पत्तों से बने ये डिस्पोजल, प्लास्टिक जैसे ही मजबूत होंगे। इसके लिए दोना-पत्तल की कवरिंग कागज या लिंट (एक तरह का प्लास्टिक टेप) से न होकर खाद्य से बने गोंद से की जाएगी। करीब दो माह के शोध के बाद IIT कानपुर ने इसके लिए मशीनें तैयार की हैं। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में देश में इसकी शुरुआत छत्तीसगढ़ के मैनपुर से होने वाली है।
दरअसल, माहुल के पत्तों से तैयार दोना-पत्तलों को आपस में जोड़ने और मजबूत बनाने के लिए कागज या लिंट का इस्तेमाल किया जाता है। यह पर्यावरण के साथ लोगों और पशुओं की सेहत पर भी बुरा असर डालते हैं। अब उसे वनोपज से बनी गोंद से जोड़ा जाएगा। IIT कानपुर लंबे समय से छत्तीसगढ़ के वनोपज पर शोध कर रहा है। यह प्रयोग इसी का नतीजा है। जर्मनी के बाद इस तकनीक से दोना-पत्तल बनाने वाला भारत दूसरा देश होगा।
दो महीने से टीम के सदस्य कर रहे हैं मैनपुर में ट्रायल
स्थानीय लघु वनोपज से बने खाद्य गोंद के लेप से पत्तों को जोड़ने की तकनीक का इस्तेमाल केवल जर्मनी में ही होता है। अब IIT कानपुर की शोध टीम और उसके इन्क्यूबेटेड स्टार्टअप्स के चलते यहां उपलब्ध होने जा रहा है। करीब दो महीने से टीम के 20 सदस्य इस पर शोध कर रहे थे। जबकि एक टीम मैनपुर में रहकर शोध का ट्रायल कर रही है। इसके बाद दोना-पत्तल बनाने की क्षमता बढ़ेगी और लागत घटेगी। नए साल में संभवत: ये यूनिट चालू हो जाएगी।
प्लास्टिक का विकल्प, सेहत भी रहेगी सुरक्षित
IIT कानपुर के वरिष्ठ प्रबंधक अंकित सक्सेना ने बताया कि खाद्य गोंद पूरी तरह से प्राकृतिक होगा, जो स्थानीय वन उत्पादों से तैयार किया जाएगा। पहले एक पत्तल की लागत अधिकतम ढाई रुपए आती थी, जो अब घटकर डेढ़ रुपए तक होगी। पेपर व लिंट के इस्तेमाल से सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से भी सुरक्षित रखेगी। उन्होंने बताया कि आदिवासी देश की आबादी में 9% का योगदान करते हैं। इससे प्लास्टिक पर रोक से बाकी को भी फायदा पहुंचाएंगे।
प्रदेश के 9 जिलों में भी इसे लागू किया जाएगा
अंकित सक्सेना ने बताया कि आदिवासियों के लिए टेक फार ट्राइबल्स के तहत छत्तीसगढ़ में उपलब्ध लघु वनोपज पर IIT कानपुर लगातार शोध कर रहा है। इसी से नई तकनीक पर शोध किया गया है। विकसित तकनीक जर्मन प्रौद्योगिकी की तुलना में बहुत अधिक प्रभावी और कुशल है। आने वाले महीनों में मैनपुर केंद्र में उत्पादन शुरू हो जाएगा। सरकार की मंजूरी के बाद इसे राज्य के अन्य 9 जिलों के वन धन विकास केंद्रों में भी लागू करेंगे।
बिजली गुल होने पर भी 10 घंटे तक चलेगी मशीन
शोध में लगी तकनीकी टीम के अंशु सिंह ने बताया कि केंद्र में स्थापित मशीन की जगह नई तकनीक के लिए नई मोल्डिंग मशीन का डिजाइन तैयार किया गया है। जल्द ही इसे सभी चयनित केंद्रों में स्थापित किया जाएगा। ये मशीनें पहले से ज्यादा हाईटेक हैं। लो वोल्टेज या बिजली गुल होने पर भी मशीन एक दिन में लगातार 8 से 10 घंटे तक चल सकेगी। मशीन एक दिन में 5 से 7 हजार लीफ प्लेट बनाने की क्षमता रखती हैं।
क्या है स्टार्टअप इन्क्यूबेटर
स्टार्टअप इन्क्यूबेटर एक सहयोगी कार्यक्रम है जिसे नए स्टार्टअप को सफल बनाने में मदद करने के लिए डिजाइन किया गया है। स्टार्टअप इन्क्यूबेटर का एकमात्र उद्देश्य उद्यमियों को अपना व्यवसाय बढ़ाने में मदद करना है। स्टार्टअप इन्क्यूबेटर आमतौर पर गैर-लाभकारी संगठन होते हैं, जो आमतौर पर सार्वजनिक और निजी दोनों संस्थाओं द्वारा चलाए जाते हैं।
50 हजार की कमाई सीधे 2 लाख प्लस में जाएगी
दो साल से मैनपुर में 300 महिलाएं दोना-पत्तल उत्पादन काम में लगी हुई हैं। अब तक ये महिलाएं माहुल पत्ते का दोना पत्तल बनाती थीं। पत्तल में लिंट या मोटे पेपर का इस्तेमाल होता था। बिजली ने साथ दिया तो महीने में 60 से 70 हजार पत्तल बनाकर 50 हजार की कमाई कर लेती थीं। अब नई तकनीकी से उत्पादन ढाई लाख हो जाएगा और मुनाफा भी 2 लाख प्लस में होगा। चूंकि इसमें सेहत को प्रभावित करने वाले पेपर का इस्तेमाल नहीं होगा, ऐसे में इसकी बिक्री भी ज्यादा होने की संभावना है।
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