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डाउनलोड करेंकोरबा के विकास के लिए अपनी जमीन देने वाले भू-विस्थापित आज भी अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन अब तक उन पर शासन-प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया है। देश की महारत्न कंपनी NTPC को अपनी जमीन देने के बाद भी जब वादे के मुताबिक उन्हें नौकरी नहीं मिली, तब इन भू-विस्थापितों ने आर-पार की लड़ाई का मन बन लिया।
स्वतंत्रता दिवस के एक दिन बाद 16 अगस्त से इन्होंने अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का मन बना लिया है। भू-विस्थापितों का कहना है कि वे पिछले 43 सालों से नौकरी की आस में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, लेकिन प्रबंधन ने उनके जख्मों पर मरहम लगाने के बजाए हमेशा नमक ही रगड़ा। भू-विस्थापित प्रहलाद केंवट और लक्ष्मण लाल कैवर्त ने प्रबंधन पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया।
प्रबंधन अपना किया वादा भूला
कोरबा में उद्योगों और भू-विस्थापितों के बीच संघर्ष कोई नई बात नहीं है। SECL से लेकर CSEB और NTPC को अपनी जमीन देने वाले भू-विस्थापित आज भी नौकरी के लिए तरस रहे हैं। वहीं उद्योगों के लिए जमीन लेने वाली ये कंपनियां अब अपने वादे से मुकरते हुए इन्हें जॉब नहीं देना चाहती।
उग्र आंदोलन की चेतावनी
NTPC ने 300 से अधिक परिवारों की जमीन जब ली थी, तब उन्हें आश्वस्त किया था कि शैक्षणिक योग्याता के आधार पर हर परिवार से एक सदस्य को नौकरी दी जाएगी, लेकिन समय बदलने के साथ ही प्रबंधन अपना वादा भूल गया। प्रबंधन से कई बार नौकरी के संबंध में चर्चा की गई, लेकिन भू-विस्थापितों के हाथ केवल निराशा ही लगी। यही वजह है कि अब इनके पास आंदोलन करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है। मांग जल्द पूरी नहीं होने पर इन्होंने उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है।
इस साल शुरुआत में भी हुआ था आंदोलन
आज से 7 महीने पहले भी भू-विस्थापित काफी उग्र हो गए थे। उस वक्त उन्होंने रेलवे ट्रैक जाम कर दिया था और मालगाड़ियों को रोक दिया था। जिससे NTPC को होने वाला कोयला परिवहन ठप हो गया। उस समय पुलिस और एनटीपीसी प्रबंधन के साथ प्रदर्शनकारियों की वार्ता चली और जैसे-तैसे मामला शांत हुआ।
रोजगार को लेकर विरोध-प्रदर्शन
दरअसल एनटीपीसी से भू-विस्थापितों का पूरा विवाद रोजगार, मुआवजे और पुनर्वास से जुड़ा हुआ है। साल 1978-2004 के बीच कोयला खनन के लिए हजारों किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई थी। किसानों से कई वादे भी किए गए। वादे पूरे नहीं हुए, तो किसानों ने इसे लेकर रोजगार एकता संघ और छत्तीसगढ़ किसान सभा के बैनर तले धरना भी दिया। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि साल 2004 की पुनर्वास नीति के अनुसार सभी प्रभावित किसानों को स्थायी नौकरी दी जाए।
NTPC ने रोजगार का वादा नहीं किया पूरा
ग्रामीणों का आरोप है कि उनकी जमीन NTPC प्रबंधन ने रेल लाइन के लिए भी अधिग्रहित की। उस वक्त कहा गया था कि भू-स्वामियों को रोजगार भी उपलब्ध कराया जाएगा, लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद भी ऐसा नहीं हुआ है।
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