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डाउनलोड करेंआज आजादी को 75 साल पूरे हो गए हैं। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देशभर में अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराने वाले क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद किया जा रहा है। लेकिन, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक ऐसा परिवार भी है, जो आज तक अपने पूर्वज को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिलाने के लिए उनकी तस्वीरों के साथ दस्तावेज लेकर भटक रहा है। उनके मन में दर्द इस बात का है कि उनके परिवार के सदस्य ने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों की यातनाएं झेलीं, फिर भी शासन-प्रशासन उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मानने के लिए तैयार नहीं है। देखिए दैनिक भास्कर की खास रिपोर्ट...
बिलासपुर के जूना में रहने वाले मनोहर लाल सिंह, जिन्हें लोग 'जल्ला सिंह' के नाम से जानते थे, उनके मन में युवावस्था से ही देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा था। वे काम तो टेलरिंग का करते थे, लेकिन उनके मन में देशप्रेम की लौ ऐसी जली कि उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की खिलाफत शुरू कर दी। बिलासपुर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने जब आंदोलन शुरू किया, तो उन्होंने भी इसमें हिस्सा लिया और सबके साथ जेल भी गए। जल्ला मनोहर सिंह का जन्म 13 मई 1912 को हुआ था, तब देश पर ब्रिटिश हुकूमत का कब्जा था और लोग गुलामी की जंजीरों से छूटने के लिए कसमसा रहे थे।
जल्ला मनोहर लाल सिंह के परिवार में गरीबी थी, बावजूद इसके उनके मन में देश प्रेम की ललक बचपन से ही थी। 1927 में बिलासपुर में जब अंग्रेजी हुकुमत की दमनकारी नीतियों की खिलाफत हुई, तब बिलासपुर में छात्रों ने वानर सेना नाम से संगठन बनाया, जिसके वे सक्रिय सदस्य रहे। इस छात्र संगठन ने अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ अभियान चलाया और विदेशी कपड़ों की होली जलाकर विरोध-प्रदर्शन किया।
इस दौरान विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार को लेकर गढ़वाली दिवस पर आंदोलन किया गया। इस विरोध-प्रदर्शन के दौरान अंग्रेज सैनिकों ने जल्ला सिंह पर लाठियां और कोड़े बरसाए और उन्हें जेल में डाल दिया। भले ही सरकारी दस्तावेजों में यह रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन कांग्रेस की ओर से प्रकाशित पुस्तक के साथ ही देवचरण तिवारी की इतिहास सहित अन्य दस्तावेजों में यह लिखा हुआ है। इन सब में इस बात का जिक्र है कि जल्ला मनोहर सिंह आजादी की लड़ाई में सहभागी बने थे।
महाकोशल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने दिया था ताम्रपत्र
जब देश आजाद हुआ, तब कांग्रेस कमेटी की ओर से आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए जल्ला मनोहर लाल सिंह को ताम्रपत्र दिया गया था। उस समय जबलपुर के महाकोशल कांग्रेस कमेटी ने ये ताम्रपत्र दिया था, जिसे आज भी परिवार के सदस्यों ने सहेजकर रखा है।
हमेशा खादी का कुर्ता पहनते थे 'जल्ला मामा'
रिटायर्ड प्राचार्य और रावत नाच महोत्सव समिति के संयोजक और लोक संस्कृति पर केंद्रित पत्रिका मड़ई के संपादक डॉ. कालीचरण यादव बताते हैं कि मनोहरलाल सिंह को जूना बिलासपुर में बच्चे जल्ला मामा के नाम से जानते थे। उस समय मैं भी बच्चा था, तब वे टेलरिंग का काम करते थे। वे मोहल्ले के दूसरे लोगों से अलग रहते थे। वे खादी का कपड़ा पहनते थे। मेरी मां बताती थीं कि जब महात्मा गांधी बिलासपुर आए थे, तभी से वे खादी के पकड़े पहनने लगे।
आजादी की लड़ाई में जाना पड़ा था जेल, झेलनी पड़ी थी यातनाएं
रिटायर्ड प्राचार्य कालीचरण बताते हैं कि आजादी के बाद उनके बारे में हमेशा चर्चा होती थी। अंग्रेजों के कपड़ों की होली जलाने जैसे आंदोलन करने पर उन्हें जेल हुआ था। जेल में अंग्रेज सिपाही उन पर लाठियां और कोड़े बरसाते थे। इन सभी यातनाओं को झेलकर वे कांग्रेस के सच्चे सिपाही के रूप में जाने जाते थे।
कभी खुद नहीं किया प्रयास, सम्मान दिलाने परिवार लड़ रही लड़ाई
आजादी के 75 साल हो रहे हैं, लेकिन अपने जीते जी जल्ला मनोहरलाल ने ताम्रपत्र के साथ गांधीजी से भेंट में मिले चरखे को ही अपना सम्मान समझा। उन्होंने खुद कभी सरकारी रिकॉर्ड में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहलाने का कोई प्रयास नहीं किया। बाद में उनके भतीजे प्रताप सिंह ने इसके लिए प्रयास किया और सारे दस्तावेज जुटाए। उन्होंने जेल से भी कागजात जमा किए और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिलाने के लिए 1990 से लगातार प्रयासरत रहे।
जेल के दस्तावेजों में नहीं है नाम, इसलिए शासन से नहीं मिला दर्जा
प्रताप सिंह ने जेल से जानकारी जुटाई, तब पता चला कि जिस समय जल्ला मनोहर सिंह जेल गए थे, उन तीन सालों का रिकॉर्ड गायब है। जेल के दस्तावेजों में नाम नहीं होने पर उन्होंने दूसरे दस्तावेज जुटाए और इतिहास के पन्नों में दर्ज रिकॉर्ड लेकर जिला प्रशासन और शासन के समक्ष उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिलाने के लिए आवेदन प्रस्तुत करते रहे।
अब पोता लड़ रहा लड़ाई
जल्ला मनोहर सिंह के भतीजे प्रताप सिंह की भी कुछ साल पहले मौत हो गई, लेकिन वे अपने पूर्वज को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा नहीं दिला सके। उनके जाने के बाद अब उनका बेटा और मनोहरलाल सिंह का पोता उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिलाने के लिए आवेदनपत्र लेकर शासन-प्रशासन के पास जा रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि आजादी के अमृत महोत्सव पर उनके दादा को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा मिल जाएगा।
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