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डाउनलोड करेंबालोद जिले के डौंडीलोहारा विकासखंड में स्थित मांझी धाम में 3 दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। जिले के वनांचल ग्राम बाघमार में हीरासिंह देव उर्फ कंगला मांझी को श्रद्धांजलि देने देश भर से समाज के लोग पहुंचे हुए हैं। 5 दिसंबर से आयोजित इस कार्यक्रम का आज आखिरी दिन है।
डौंडीलोहारा विकासखंड का छोटा सा गांव बाघमार पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कंगला मांझी के कारण विख्यात है। इनकी पुण्यतिथि पर हर साल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। मंगलवार को कार्यक्रम में केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते भी यहां पहुंचे थे। उन्होंने दिवंगत हीरासिंह देव उर्फ कंगला मांझी को नमन किया। मांझी सरकार का मुख्यालय नई दिल्ली में है। बालोद जिले की गांव में पूरे देशभर के मांझी के शागिर्द पहुंचे हुए हैं और इनकी अपनी अलग संस्कृति और विचारधारा है, जो देशभक्ति से ओतप्रोत है।
बालोद जिले में मांझी सरकार चलती है, जो आदिवासियों की खुद की सरकार है। उनके सैनिक पुलिस जैसी वर्दी भी पहनते हैं। आजादी के इतने सालों के बाद भी छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कई इलाकों में मांझी सरकार का असर है। वहां के मामले मांझी सरकार के सैनिक सुलझाते हैं। मांझी सरकार में भारत की आम सरकार की तरह ही मंत्री, संतरी और पुजारी होते हैं।
मांझी सरकार की स्थापना हीरा सिंह देव कांगे उर्फ कंगला मांझी ने की थी। कंगला मांझी गोंड आदिवासी समुदाय से थे। महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर कंगला मांझी ने आदिवासी इलाकों में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी समानांतर सरकार बना ली थी। मांझी सरकार से जुड़े लोग बताते हैं कि आजादी के बाद आदिवासी समुदाय को उसका हक नहीं मिला, जिसकी वजह से 'श्री मांझी अंतरराष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक' सरकार आज भी काम कर रही है।
मांझी के सेना और उसका अनुशासन
केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि जिन्होंने भी राष्ट्र सेवा के लिए अपना आजीवन समर्पित कर दिया, उनके परिवार को मैं बधाई देता हूं। उन्होंने कहा कि मांझी ने आदिवासी समाज के हित में लड़ाई लड़ी। उन्होंने जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए अपनी एक अलग सेना बनाई, जिसका अनुशासन अनुकरणीय है।
मूल संस्कृति की दिखी झलक
केंद्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने आदिवासियों की संस्कृति की तारीफ करते हुए कहा कि इनकी मूल संस्कृति, देवी-देवताओं की झलक कार्यक्रम में देखने को मिली। उन्होंने कहा कि मांझी सरकार के सैनिकों और लोगों में देश भक्ति कूट-कूटकर भरी हुई है। वे निःस्वार्थ भाव से खुद मेहनत कर शिक्षा की ओर समाज को अग्रसर कर रहे हैं।
विचारधारा से प्रेरित होकर सर्वस्व न्योछावर
मांझी सेना के निरीक्षक के रूप में काम कर रहे महाराष्ट्र के श्रीराम सूरी ने कहा कि कभी भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। हम मांझी के दिखाए हुए मार्ग पर चल रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और आदिवासी समाज को एकजुट करना है और वापस भारत देश को सोने की चिड़िया के रूप में हम देखना चाहते हैं, इसलिए हर वर्ष कंगला मांझी की शहादत को नमन करने बालोद पहुंचते हैं।
आदिवासियों को एकत्र करने के बाद शुरू हुई सरकार
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के रहने वाले गोंड आदिवासी हीरा सिंहदेव कांगे उर्फ कंगला मांझी ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस से मुलाकात के बाद उन्होंने आदिवासियों को एकत्र करना शुरू किया और गांधीवादी तरीके से बस्तर इलाके में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी समानांतर सरकार बनाने की घोषणा कर दी। अंग्रेज इस देश से चले गए। देश को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली। तब तो यह सरकार खत्म हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
इस बारे में कंगला मांझी के बेटे कुंभदेव कांगे बताते हैं कि स्वतंत्रता के बाद आदिवासियों को हाशिये पर डाल दिया गया। बराबरी की बात तो छोड़िए, उनका हक भी उन्हें नहीं मिला। ऐसी परिस्थिति में आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई को जारी रखने के लिए 1951 में कंगला मांझी ने 'मांझी अंतरराष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक संस्था' की नींव रखी। इस तरह स्वतंत्र भारत में बनी कंगला मांझी सरकार।
पत्नी फुलवा देवी को संगठन में राजमाता का दर्जा प्राप्त
कंगला मांझी के निधन के बाद उनकी पत्नी फुलवा देवी इस संगठन की कमान संभाल रही हैं। संगठन में उन्हें राजमाता का दर्जा प्राप्त है। वहीं उनके बेटे कुंभ देव बतौर राजकुमार इस संस्था को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं।
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