पाएं अपने शहर की ताज़ा ख़बरें और फ्री ई-पेपर
डाउनलोड करेंसुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट के उस फैसले पर मुहर लगा दी है, जिससे केंद्र व राज्य सरकार को तकरीबन तीन हज़ार करोड़ रुपए से अधिक की राजस्व की बचत हुई है। विगत 4 जनवरी, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट द्वारा 22 अप्रैल, 2019 को सुनाए गए एक अहम फैसले के विरुद्ध दायर की गई अपील को मेरिट के आधार पर खारिज कर दिया।
विदित हो कि राजगीर में रक्षा मंत्रालय द्वारा आयुध कारखाना स्थापित करने के लिए लगभग 25 सौ एकड़ से अधिक जमीन का अधिग्रहण राज्य सरकार द्वारा नालंदा जिला में किया गया था। कई जमीन मालिकों ने जमीन के मुआवजे से असंतुष्ट होकर पटना हाई कोर्ट में अनेक रिट याचिकाएं दायर की थी, जिसे एकल पीठ ने सुनवाई के बाद जमीन मालिकों के पक्ष में फैसला देते हुए मुआवजे की रकम के पुनर्निर्धारण हेतु जिलाधिकारी को भेजा था। इसके बाद सारे मामले बिहार राज्य भूमि अधिग्रहण, पुनर्स्थापन व स्थानांतरगमन ट्रिब्यूनल में स्थानांतरित किये गए।
वहां के पीठासीन पदाधिकारी ने लगभग चार गुना से भी ज्यादा मुआवजा व उस पर ब्याज लगाते हुए पुनर्निर्धारण किया, जिसकी वजह से केंद्र व राज्य सरकार को लगभग तीन हजार करोड़ रुपये से भी अधिक राजस्व का नुकसान उठाना पड़ता। इस आदेश के बाद ट्रिब्यूनल द्वारा सरकारों से वसूली की कार्रवाई प्रारंभ की गई। इस दौरान केन्द्र सरकार के तत्कालीन एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस डी संजय ने केंद्र सरकार द्वारा एकल पीठ के पुराने फैसले के विरुद्ध हाई कोर्ट में ही दो जजों के समक्ष अपील दायर कराया।
इसके बाद दलील पेश करते हुए यह बताया कि जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पुराने एक्ट के तहत सम्पन्न हो गई थी, इसलिए इसका नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत मुआवजे का पुनर्निर्धारण नहीं किया जा सकता है। सुनवाई के पश्चात हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ए पी शाही व जस्टिस अंजना मिश्रा की खंडपीठ ने 22 अप्रैल, 2019 के फैसले, जिसके द्वारा जमीन के मुआवजे के पुनर्निर्धारण के आदेश दिया गया था, को निरस्त कर दिया। साथ ही साथ ट्रिब्यूनल द्वारा बढ़ी हुई दर पर किये गए मुआवजे के पुनर्निर्धारण के आदेश को भी रद्द कर दिया। इस फैसले के विरुद्ध जमीन मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर की, जिसकी सुनवाई जस्टिस ए एम खानविलकर व जस्टिस सी टी रवि कुमार की पीठ द्वारा की गई। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पटना हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए, जमीन मालिकों की अपीलों को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लगभग आठ वर्षों से चल रहा यह विवाद समाप्त हो गया। इस प्रकार से अब केंद्र और राज्य सरकार जमीन मालिकों को लगभग तीन हज़ार करोड़ रुपये से अधिक की राशि देने से बच गई।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.