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डाउनलोड करेंमुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे चहेते RCP सिंह की ईमानदारी पर दाग लग गया है। कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहतर प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालने वाले सिंह केंद्र में मंत्री बनने के बाद JDU का एक काम नहीं कर पाए। दिल्ली जाने के बाद संगठन में कमजोर पड़ गए हैं। दरअसल, ललन सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद जो पहली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई थी, उसमें यह तय किया गया था केंद्रीय मंत्री UP चुनाव की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेंगे और BJP के साथ गठबंधन करके वहां पार्टी को चुनाव लड़ाएंगे। इस पर RCP ने इसमें हामी भरी थी, लेकिन अंततः वह कामयाब नहीं रहे।
नीतीश कुमार ने जताया था RCP पर भरोसा
अपनी कुशल प्रबंधन के कारण RCP राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और JDU को जब केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने का मौका मिला तो भी नीतीश कुमार ने RCP सिंह ही मंत्री बने। राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय कहते हैं, 'उस समय की मंशा यह थी कि RCP केंद्र में जाकर JDU और बिहार के हित में काम करेंगे। तभी उन्हें यह भी जिम्मेदारी दी गई थी कि वह UP चुनाव को लेकर BJP के साथ बेहतर तालमेल के साथ गठबंधन करेंगे और वहां पार्टी को चुनाव लड़वाएंगे। उन्होंने बाद के समय में JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष और तमाम नेताओं को यह फीडबैक दिया था कि BJP के साथ बात पक्की हो गई है। गठबंधन में चुनाव लड़ना तय हो गया है। बस सीटों का बंटवारा बाकी रह गया है, लेकिन चुनाव की घोषणा होने के बाद भी BJP ने ऐसा कुछ नहीं किया। किसी तरह की कोई सीटों का बंटवारा नहीं हुआ। अंत में JDU ने अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है।'
घट गया है पार्टी में रुतबा
पांडेय बताते हैं कि केंद्रीय मंत्री पूरी तरह से संगठन से कट गए हैं। जब से ललन सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं तब से RCP का रुतबा JDU में घटता गया है। बीच के दिनों में दोनों के बीच मतभेद की भी बात आई थी। वर्चस्व की लड़ाई साफ तौर पर देखी जाने लगी थी। दोनों नेताओं के समर्थक आपस में भिड़े थे। सड़कों पर पोस्टर वार हुआ था। ऐसे में RCP सिंह ने यह टास्क पूरा नहीं किया तो ललन पार्टी और संगठन की नजरों में काफी मजबूत होंगे और इसका खामियाजा केंद्रीय मंत्री को आगे भुगतना पड़ेगा।
जुलाई में पूरा हो रहा टर्म
अरुण पांडेय कहते हैं कि आरसीपी सिंह राज्यसभा के सदस्य हैं। इनका दूसरा टर्म जुलाई में पूरा हो रहा है। ऐसे में इनकी राज्यसभा के रिन्युअल पर ग्रहण लग सकता है। संगठन और पार्टी के नेताओं के मन में यह घर कर गया है कि आरसीपी सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की ज्यादा सुनते हैं। हाल के दिनों में जातीय जनगणना और विशेष राज्य के दर्जे को लेकर जिस तरह से पार्टी मजबूती के साथ आवाज बुलंद कर रही है, उसमें आरसीपी सिंह का साथ न मिलना उनकी ईमानदारी पर सवाल खड़ा करता है।
ऐसे में सिंह का जुलाई में फिर से राज्यसभा सांसद बनना तय नहीं माना जा रहा है और जब वह राज्यसभा सांसद नहीं रहेंगे तो केंद्र में मंत्री बनना भी मुश्किल है। हालांकि, अरुण पांडेय ये भी बताते हैं कि गठबंधन लगातार चला तो JDU दोबारा भेज भी सकती है, लेकिन गठबंधन में दरार साफ देखा जा सकता है और ऐसे में सिंह को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
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