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डाउनलोड करेंबिहार की राजधानी पटना से 275 KM दूर बांका के बाराहाट के परघड़ी गांव में मातम है। 5 हजार से अधिक आबादी वाले इस गांव में करीब दो सौ लोगों के लिए प्रार्थना चल रही है, क्योंकि ये लोग घाटी में रोजगार कर रहे हैं और उनकी जान को खतरा है। जम्मू-कश्मीर जाने के पीछे बड़ी वजह बिहार में बेरोजगारी है।
बताया जाता है कि 20 साल पहले गांव के कुछ युवा रोजगार की तलाश में कश्मीर पहुंचे थे और फिर एक-एक कर वहां बड़ी जमात खड़ी कर दी। आतंकी घटना में अरविंद साह की मौत के बाद अब गांव में दहशत है, परिवार वाले अब हर पल सलामती की दुआ कर रहे हैं।
गांव वालों की आंखों में दिख रहा था खौफ
भास्कर की टीम आतंकी घटना में मारे गए अरविंद साह के गांव परघड़ी पहुंची तो हर तरफ सन्नाटा पसरा था। एक कच्चे मकान के बाहर खेल रही 8 साल की पूजा से अरविंद का घर पूछा गया तो वह भागकर अंदर चली गई। मासूम का यह डर साफ बता रहा था कि आतंकी घटना से गांव के लोग कितने खौफजदा हैं। थोड़ी देर में एक महिला निकली, उसकी आंखों में डर साफ दिख रहा था। वह अरविंद के घर की तरफ इशारा कर बेटी को लेकर वापस घर में चली गई। कहानी गांव के हर घर की एक जैसी ही है। आतंकी घटना में मारे गए अरविंद के घर जब भास्कर की टीम पहुंची तो पता चला गांव के करीब 200 युवा रोजगार के लिए घाटी में हैं।
महेश ने बताई कश्मीर जाने की कहानी
गांव वालों से बातचीत के दौरान 70 साल के महेश साव ने कश्मीर जाने की कहानी बताई। महेश ने कहा- "जब कश्मीर जल रहा था तब इतना खतरा नहीं था, जितना आज है।' उन्होंने बताया- "20 से 25 साल पहले गांव के कुछ बेरोजगार युवक रोजगार की तलाश में जम्मू कश्मीर गए। गांव में 90 प्रतिशत परिवार हलवाई बिरादरी के हैं, जिनका पेशा खाने-पीने का सामान बनाने का है। जम्मू-कश्मीर में गोलगप्पे का बड़ा स्कोप था और गांव के युवा इसे बनाने में माहिर हैं। इसलिए गोलगप्पा की फेरी लगाने के कारोबार में गांव के साथ बिहार के अन्य इलाकों से बेरोजगार वहां जाने लगे।'
महेश बताते हैं- "गांव के करीब 200 लड़के वहां गोलगप्पा के साथ अन्य खाने पीने वाले सामान की फेरी लगा रहे हैं। इसमें से कई लड़के तो परिवार के साथ वहां रह रहे हैं। गोलगप्पा और ब्रेड पकौड़ा के साथ अन्य खाने पीने के सामान की बढ़ती डिमांड को लेकर यहां के युवा वहां पहुंच गए हैं।'
महेश का बेटा भी आतंकी हमले में हुआ था जख्मी
बातचीत में महेश की आंखों में भी साफ खौफ दिख रहा था। उन्होंने बताया- "मेरा बेटा भी जम्मू कश्मीर में रहता है। 20 दिन पहले पुलवामा में आतंकवादियों के हमले में बेटा जितेंद्र साव गंभीर रूप से घायल हो गया था। बम विस्फोट की चपेट में आए जितेंद्र की जान तो बच गई, लेकिन डॉक्टर उसका एक हाथ नहीं बचा पाए। एक बेटा दुर्गेश और उसकी भाभी भी वहां रहती है। अब महेश के साथ पूरा परिवार दहशत में है। लगातार बच्चों को फोन कर रहा हूं कि घर वापस आ जाए। यहीं मेहनत मजदूरी करके जी लेंगे।'
आतंकियों ने कई बार दिया है गांव को दर्द
गांव वालों ने बताया कि 7 साल पहले महेंद्र साव के पुत्र चंदन साव का आतंकवादियों ने बम मारकर हाथ उड़ा दिया था। एक-दो बार नहीं बार-बार आतंकियों ने गांव को दर्द दिया है। 10 साल पहले भी गांव के सूर्यनारायण साव के पुत्र इंद्र साव भी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इलाज कराने के बाद दहशत में उन्होंने जम्मू छोड़ दिया और अब वह अपने गांव में ही मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। गांव के राकेश और पंचू भी आंतकी घटना में बाल बाल बचे हैं।
गांव वालों का कहना है- "बेरोजगारी मजबूर करती है, जिससे गांव के बेरोजगार युवाओं को रोजगार के लिए जाना पड़ता है।'
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बिहार में बेरोजगारी की वजह से आतंकियों की गोली खा रहे
कौशल ने बताया- "सरकार मनरेगा में काम देने का दावा करती है, लेकिन वो दावे धरातल पर नहीं हैं। दैनिक मजदूरी 500-600 निर्धारित है, लेकिन ठेकेदार 230-240 रुपए ही देता है। ऐसे में परिवार का गुजारा कैसे होगा। इसलिए लोगों को जम्मू व अन्य राज्यों में जाना मजबूरी है।'
विनोद साव का कहना है- "अगर हमें रोजगार मिल जाता और उचित मजदूरी मिल जाती तो बाहर क्यों जाते। मुख्यमंत्री को चाहिए कि बिहार में खासकर भागलपुर में उद्योग लगवाएं, ताकि लोग घर नहीं छोड़ें।'
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