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डाउनलोड करेंगूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट के CEO सुंदर पिचाई ने अमेरिका के स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के स्टूडेंट्स से अपनी शुरुआत और अब तक के सफर पर खुल कर बात की। उन्होंने स्टूडेट्स से कहा- ‘मैंने 8 साल की उम्र में IIT जाने का सपना नहीं देखा था, न ही मेरी होम स्कूलिंग हुई। विकीपीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म पर लिखी ये बातें मनगढ़ंत हैं।
हां, मेरे लिए टेक ट्रांजिशन अहम था क्योंकि इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। बचपन में 5 साल के इंतजार के बाद घर में पुराना रोटरी डायल वाला फोन लगा। तब उन लोगों को देखा जो हमारे घर फोन करने आते थे। मैं इस बात काे लेकर हमेशा स्पष्ट रहा कि टेक्नोलॉजी बदलाव ला सकती है, मेरी कोशिशें टेक्नोलॉजी तक आसान पहुंच की रही हैं। पढ़िए, बातचीत के खास अंश...
1. सवाल: गूगल में सबसे अलग क्या है?
सुंदर पिचाई: इस कंपनी की सबसे अच्छी और अलग बात यह लगी कि यह सकारात्मक और आशावादी वर्कप्लेस है। ज्यादातर जगहों पर आपको लोग ये बताने की कोशिश करते हैं कि चीजें काम क्यों नहीं करेंगी। पर यहां की स्पिरिट अलग है। यहां लोग आपको बताएंगे कि ये अच्छा विचार है, पर इसे इस तरह अमल में लाना चाहिए। यानी आप कुछ नया कर सकते हैं, समस्याओं को बेहतर तरीके से हल कर सकते हैं, ये माहौल गूगल में ही मिला। ऐसा कल्चर बनाने में बहुत मेहनत लगती है। इसी कल्चर ने मुझे रोके रखा।
2. सवाल: आगे बढ़ने के लिए क्या करना चाहिए?
सुंदर पिचाई: अगर आपको आगे बढ़ना है तो इनोवेशन को प्रोत्साहन देना ही होगा। पर होता इसके विपरीत है...जैसे-जैसे कंपनियां बड़ी होती जाती हैं, वे ज्यादा रूढ़िवादी होती जाती हैं। भले ही वे आर्थिक रूप से मजबूत हैं, संसाधनों की कमी नहीं है, फिर भी वे फैसले लेने में उदारता नहीं दिखातीं। यानी समय के साथ वे सुरक्षित चीजों पर ही दांव लगाना पसंद करती हैं। कंपनियों को जोखिम लेने और इनोवेशन को बढ़ावा देना ही होगा। इसके अलावा उन्हें विफलता के लिए भी तैयार रहना होगा।
3. सवाल: अगर नतीजे लक्ष्य के विपरीत हों तो..?
सुंदर पिचाई: नतीजों के लिए ही नहीं कोशिशों के लिए भी पुरस्कार देना होगा। कंपनी के आगे बढ़ने की वजह वे शुरुआती अच्छी चीजे हैं, जिन्हें सहेजकर रख जाता है। जैसे-जैसे कंपनी बढ़ती है, आपको इस पर कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इस प्रकिया का एक बड़ा हिस्सा टेक में इनोवेशन और प्रोडक्ट निर्माण के कल्चर को बनाए रखना है। इस पर फोकस जरूरी है।
4. सवाल: मुश्किलों से बाहर निकलने के लिए कोई आदत या मंत्र...?
सुंदर पिचाई: दो चीजें महत्वपूर्ण हैं.. पहली है फैसले लेना, जो आप कर सकते हैं। इसका मतलब आप एक गांठ या गुत्थी को खोल रहे हैं, जो आगे बढ़ने के लिए संगठन को अनलॉक करता है। मेरे मेंटर बिल कैंबेल ने यही सिखाया था। वे हर हफ्ते मुझसे मिलते थे और पूछते थे, इस हफ्ते कौन सी गांठ खोली? इसलिए यह बात मेरे काम में कल्चर की तरह बन गई।
अब मैं अपने फैसलों को इस रूप में देखता हूं कि इनसे हम वास्तव में कंपनी की मदद कर रहे हैं, इससे काम थोड़ा और मजेदार हो जाता है। दूसरा यह कि समय के साथ आपको पता चलता है कि आपके ज्यादातर फैसले महत्वहीन हैं, पहले ऐसा लगता है कि ये बहुत ही शानदार होगा, पर बाद में एहसास होता है कि ये नतीजा देने वाला फैसला नहीं था।
ऐसा होगा, इससे आपको सीख लेनी होगी। फैसले लीडरशिप का एक बड़ा हिस्सा होते हैं। मुझे भी लगता है कि मेरे बहुत सारे फैसले उम्मीद के मुताबिक रिजल्ट नहीं देते। जब तक आप काम से जुड़े हैं, ये क्रम चलता रहेगा।
5. सवाल: डिजिटल स्किलिंग को लेकर क्या सोचते हैं?
सुंदर पिचाई: बड़े पैमाने पर एक कंपनी के साथ आपके रास्ते में बहुत सी चीजें आती हैं। हमारा फोकस सूचना और डिजिटल स्किलिंग पर रहा है। हम इस बात को मानते हैं कि कॉलेज एजुकेशन का कोई विकल्प नहीं हो सकता। पर दुर्भाग्य से हर कोई इसका खर्च उठाने में सक्षम नहीं है। इसलिए हमने अमेरिका में डिजिटल कौशल को पहली प्राथमिकता दी।
हमने नौ माह का करियर सर्टिफिकेट प्रोग्राम शुरू किया है। अब तक 75 हजार लोग इसका फायदा ले चुके हैं, बड़ी बात इनमें 50% कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों से हैं। हम इन लोगों की भर्ती के लिए नियोक्ताओं के साथ मिलकर काम करते हैं।
6. सवाल: एक कंपनी को बेहतरीन कैसे बनाया जाए?
सुंदर पिचाई: भविष्य का काम कैसा होगा इसे लेकर मैं काफी उत्साहित रहता हूं। 20 साल पहले जब लोग गूगल को हल्के में लेते थे, तब हमने सोचना शुरू कर दिया था कि ऑफिस स्पेस कैसा होगा। हमने तय किया कि कार्यक्षेत्र मजेदार होना चाहिए। हमने इसके लिए ऑफिस स्पेस में मौलिक रूप से बदलाव किए। वैली में फिर बाकी लोगों ने इसे फॉलो किया।
ऑफिस में रचनात्मकता को बढ़ावा देने वाली कम्युनिटी बनाने की भावना, मदद सब मिलकर एक बेहतरीन कंपनी बनाते हैं। मैं लोगों को उसी तरह का लचीलापन देने का पक्षधर हूं। साफगोई से बताता हूं कि हम व्यक्तिगत संबंधों में दृढ़ भरोसा करते हैं। पर मुझे लगता है कि कर्मचारियों के साथ नरमी बरतकर उन्हें ज्यादा अधिकार देकर हम इसे बेहतर तरीके से हासिल कर सकते हैं।
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