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डाउनलोड करेंभारत में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित कई राज्यों में गन्ने की खेती खूब होती है। इससे भारी मात्रा में हर साल गन्ने का वेस्ट निकलता है। इसे मैनेज करना किसानों के लिए मुश्किल टास्क होता है। कई बार किसान इसे खेतों में जला देते हैं, जिससे पॉल्यूशन भी होता है। इसको लेकर अयोध्या के रहने वाले वेद कृष्णा ने एक पहल की है। वे गन्ने के वेस्ट से प्लेट, कटोरी, कप और पैकेजिंग मटेरियल तैयार कर रहे हैं। जिसकी मार्केटिंग वे भारत के साथ ही विदेशों में भी कर रहे हैं। कई बड़ी कंपनियां उनकी कस्टमर्स हैं। इससे सालाना 200 करोड़ रुपए से ज्यादा उनका टर्नओवर है।
वेद कृष्णा की शुरुआती पढ़ाई लिखाई अयोध्या में हुई। इसके देहरादून और फिर लंदन से उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। उसके बाद वे भारत आए और अपने पिता के कारोबार से जुड़ गए। उनके पिता अयोध्या में ही कागज बनाने का काम करते थे।
भास्कर से बात करते हुए वेद कहते हैं, 'पिता जी ट्रैडीशनल तरीके से पेपर तैयार करते थे। जब मैं उनके साथ जुड़ा तो कुछ सालों तक उनके काम को समझने की कोशिश की। जब कुछ जानकारी हो गई, अनुभव हो गया हो तय किया कि कुछ नया किया जाए। फिर मैंने अपने काम का दायरा बढ़ाया। अयोध्या और UP के बाहर अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग करनी शुरू की। क्वालिटी पर फोकस किया। टीम बढ़ाई। इससे काफी कुछ सीखने को तो मिला ही साथ ही हमारे कारोबार ने भी रफ्तार पकड़ी। करीब 10-12 सालों तक ऐसे ही चलता रहा।'
गन्ने के वेस्ट से पैकेजिंग मटेरियल तैयार करना शुरू किया
46 साल के वेद कहते हैं कि साल 2012 के आसपास की बात है। प्लास्टिक का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा था। बड़ी-बड़ी कंपनियां प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रही थीं। मुझे लगा कि गन्ने के वेस्ट से हम पेपर तो तैयार कर रहे हैं। क्यों न इससे कुछ ऐसा मटेरियल तैयार किया जाए, जिससे प्लास्टिक की जगह इस्तेमाल किया जा सके। फिर इसको लेकर मैंने रिसर्च शुरू की। इसके बाद मुझे पता चला कि गन्ने के वेस्ट से पैकेजिंग मटेरियल तैयार किए जा सकते हैं।
वे कहते हैं, 'हालांकि तब हमें इसकी प्रोसेस के बारे में जानकारी नहीं थी। फिर मैंने इसके बारे में रिसर्च की, एक्सपर्ट्स से बात की और जरूरी जानकारी जुटाई। फिर छोटे स्केल पर ही सही गन्ने के वेस्ट से पैकेजिंग मटेरियल तैयार करना शुरू किया। इसके बाद हमने कुछ कंपनियों से बात की और उनके लिए हम प्रोडक्ट तैयार करने लगे। इस काम में हमें अच्छा रिस्पॉन्स मिला।'
डिमांड बढ़ी तो बड़ी-बड़ी मशीनें मंगाकर काम शुरू किया
वेद बताते हैं, 'जब हम पैकेजिंग मटेरियल तैयार करने लगे तो हमारे प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ गई। कई कंपनियां हमसे पैकेजिंग मटेरियल की मांग करने लगीं। तब हमारे पास मैन पावर भी कम था और मशीनें भी छोटी थीं। लिहाजा हम डिमांड के मुताबिक प्रोडक्ट की सप्लाई नहीं कर पा रहे थे। इसके बाद हमने अपनी सेविंग्स से 8 बड़ी मशीनें मंगाई, टीम मेंबर्स की संख्या बढ़ाई। उन्हें गन्ने के वेस्ट से फाइबर निकालने और उससे पैकेजिंग मटेरियल बनाने की ट्रेनिंग दी। फिर साल 2016 से हम बड़े लेवल पर पैकेजिंग मटेरियल सप्लाई करने लगे। इसके बाद हमने अपने प्रोडक्ट की वैराइटी बढ़ा दी।'
कैसे करते हैं काम? क्या है मार्केटिंग मॉडल?
वेद कहते हैं कि गन्ने के वेस्ट से रीसाइकल्ड प्रोड्कट बनाने के लिए सबसे पहले हम लोग गन्ने का वेस्ट कलेक्ट करते हैं। इसके लिए हमारी टीम खेतों में जाकर किसानों से वेस्ट कलेक्ट करती है। फिर चीनी मीलों में जाकर हम वहां से गन्ने का वेस्ट अपनी फैक्ट्री में लाते हैं। उसके बाद इसे अच्छी तरह से सुखाया जाता है। फिर इसका पाउडर तैयार किया जाता है। इसमें पानी मिलाकर पल्प तैयार किया जाता है। इसके बाद मशीन के जरिए पल्प की मदद से अलग-अलग शेप में किचन के आइट्मस और टेबल वेयर आइटम बनाए जाते हैं, जो पूरी तरह ईकोफ्रेंडली होते हैं। इसमें किसी तरह का केमिकल भी नहीं मिलाया जाता है।
फिलहाल वेद की टीम तीन तरह के प्रोडक्ट बना रही है। इसमें पैकेजिंग मटेरियल, फूड कैरी और फूड सर्विस मटेरियल शामिल हैं। वे हल्दी राम, मैकडोनाल्ड सहित कई बड़ी कंपनियों के लिए इस तरह के मटेरियल तैयार कर रहे हैं। कई छोटी कंपनियों ने भी उनसे टाइअप किया है, जिनके लिए वे किचन वेयर और टेबल वेयर प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। हर दिन 10 हजार टन मटेरियल वे हर दिन प्रोड्यूस करते हैं। जिसकी डिमांड भारत के साथ-साथ विदेशों में भी है।
वेद कहते हैं कि फिलहाल हम लोग ब्रांड टु ब्रांड, यानी B2B मॉडल पर काम कर रहे हैं। कई बड़ी कंपनियों से हमारा टाइअप है। सीधे कस्टमर्स को अगर कोई प्रोडक्ट खरीदना है तो वह अमेजन और फ्लिपकार्ट से हमारा प्रोडक्ट खरीद सकता है। अपने इस काम से वेद ने सैकड़ों लोगों को नौकरी भी दी है।
आप ये काम कैसे कर सकते हैं? कितने बजट की होगी जरूरत?
वेद कहते हैं कि इस फील्ड में लोगों की अवेयरनेस बढ़ी है और बिजनेस के लिहाज से भी लोग इस फील्ड में उतर रहे हैं। हम लोग खुद भी फ्रेंचाइजी मॉडल पर काम कर रहे हैं। जिसके जरिए हम वैसे लोगों को स्पेस प्रोवाइड करा रहे हैं जो इस काम में दिलचस्पी रखते हैं और फंड लगाने के लिए तैयार हैं। इसके साथ ही हमारी टीम ऐसे लोगों को ट्रेनिंग भी देती हैं जो गन्ने के वेस्ट से इस तरह के प्रोडक्ट बनाना सीखना चाहते हैं, क्योंकि बिना ट्रेनिंग और प्रोसेस की जानकारी लिए ये काम नहीं किया जा सकता है।
जहां तक बजट की बात है, इसकी कोई लिमिट नहीं है। अगर कोई बड़े लेवल पर काम करना चाहता है तो 2-4 करोड़ रुपए लग जाएंगे। वहीं अगर कोई छोटे लेवल पर करना चाहता है तो 10 लाख से भी कम लागत में इस काम को कर सकता है। अगर किसी के पास इतना अमाउंट भी नहीं है तो वह 1-2 लाख रुपए में भी गन्ने वेस्ट से जरूरत की चीजें बना सकता है और लोग बना भी रहे हैं। इसमें सबसे बड़ी बात होती है मार्केटिंग और नेटवर्किंग की। यानी हम जो भी प्रोडक्ट तैयार करें उसकी मार्केट में डिमांड हो और लोगों तक आसानी से पहुंच सके, तभी अच्छा मुनाफा मिल सकेगा।
अगर इस तरह के स्टार्टअप में आपकी दिलचस्पी है तो ये स्टोरी आपके काम की है
मध्यप्रदेश, बिहार सहित कई राज्यों में केले की खेती खूब होती है। ज्यादातर किसान फल निकालने के बाद केले के स्टेम और पत्तियों को या तो खेत में जला देते हैं या फिर लैंडफिल में ले जाकर फेंक देते हैं। खेतों के साथ-साथ पर्यावरण को भी इससे नुकसान पहुंचता है। इस परेशानी को दूर करने के लिए मध्य प्रदेश के मेहुल श्रॉफ ने 2018 में एक स्टार्टअप की शुरुआत की। वे बनाना वेस्ट से एक दर्जन से ज्यादा प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं और हर साल 12 लाख रुपए का टर्नओवर जनरेट कर रहे हैं। (पढ़िए पूरी खबर)
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