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इससे पहले कि आपको लगे कि मैंने अपनी किराने की लिस्ट को गलती से यहां लिख दिया है तो घबराइए मत। ऐसा नहीं है। आज मेगा एम्पायर में हम आपको बताएंगे इन सब प्रोडक्ट्स को बनाने वाली एक कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर के बारे में…जिसके प्रोडक्ट्स आज भारत के 10 में से 9 घरों में रोजमर्रा के काम में इस्तेमाल किए जाते हैं। वैसे कंपनी का नाम पढ़कर आपको ये एक स्वदेशी कंपनी लग रही होगी ना? मगर ऐसा नहीं है। 90 सालों से भारत में मौजूद, देश की सबसे बड़ी एफएमसीजी कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड का कनेक्शन ब्रिटेन और नीदरलैंड से है।
नाम हिंदुस्तानी लेकिन कंपनी एंग्लो-डच
हिंदुस्तान यूनिलीवर की पैरेंट कंपनी यूनिलीवर है। इसलिए HUL की कहानी जानने से पहले ये जानिए कि आखिर यूनिलीवर कैसे बनी? साल था 1888, जब ब्रिटेन के ‘लीवर ब्रदर्स’ ने साबुन बनाने वाली लीवर ब्रदर्स कंपनी की शुरुआत की। बेहद कम समय में ही कंपनी का सनलाइट साबुन मशहूर हो गया। प्रसिद्धि इतनी कि भारत के घर-घर तक पहुंच गया। फिर आया साल 1930…स्वदेशी आंदोलन चरम पर था। इसी समय यूनिलीवर के साबुन की सेल गिरने लगी। लीवर ब्रदर्स ने गिरती सेल को देख नीदरलैंड्स की मार्जरिन यूनि (जो पहले से ही भारत में डालडा बेच रही थी) के साथ मर्जर कर लिया और खड़ी कर दी यूनिलीवर लिमिटेड कंपनी। डच कंपनी का डालडा देश में हिंदुस्तान वनस्पति मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के नाम से बिक रहा था। इसी का फायदा उठाकर लीवर ब्रदर्स ने स्वदेशी आंदोलन से खुद को बचाया।
यूनिलीवर की तीन कंपनियों के विलय से बना HUL
साल 1933 में यूनिलीवर के भारत में नींव रखे जाने के बाद, 1934 में कंपनी ने मुंबई के सेवरी में पहली साबुन फैक्ट्री खोली। इस वक्त यूनिलीवर की तीन कंपनियां - हिंदुस्तान वनस्पति मैन्युफैक्चरिंग कंपनी, लीवर ब्रदर्स इंडिया लिमिटेड, और यूनाइटेड ट्रेडर्स लिमिटेड देश में अलग-अलग काम कर रही थी। अंत में इन्हीं तीनों को नवंबर 1956 में HLL यानी हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड बनाने के लिए एक साथ विलय किया गया। उस वक्त HLL ने भारतीयों को अपनी कंपनी में 10% इक्विटी की पेशकश की और जल्द ही खबरों में छा गई। 2007 में जाकर कंपनी ने अपना नाम बदलकर हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड यानी HUL कर लिया।
कंपनी का नाम होते ही शुरू हुआ अधिग्रहण का दौर
देश में स्थापित हो जाने के बाद ‘हिंदुस्तान यूनिलिवर लिमिटेड’ ने सबसे पहले साल 1972 में लिप्टन कंपनी का अधिग्रहण किया। और 1977 में लिप्टन टी लिमिटेड नाम से कंपनी भारत में स्थापित हो गई। साल 1986 में HUL ने भारत में पहले से ही मौजूद पोन्ड्स लिमिटेड को भी खरीद लिया। अपनी सफलता को देखते हुए 1992 में HUL ने नेपाल में ‘यूनिलिवर नेपाल लिमिटेड’ नाम से एक सब्सिडरी कंपनी भी खड़ी कर दी।
टाटा की कंपनी को खरीदने के बाद तेजी से बढ़ा एम्पायर
साल 1991 के बाद का दौर भारतीय इकोनॉमी की तरक्की का दौर था। बाजार विदेशी कंपनियों के लिए खुल चुका था। इसी समय देश की बड़ी कंपनी टाटा अपने तेल और साबुन के बिजनेस से बाहर निकलना चाह रही थी। HUL ने जब भारत में कदम रखे तब इसकी सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी टाटा कंपनी ही थी। हालांकि 1994 में टाटा ने अपनी सब्सिडियरी कंपनी टाटा ऑयल मिल्स HUL को ही बेची। फिर आया साल 1996 जब यूनिलीवर ब्यूटी प्रोडक्ट्स के मार्केट में उतरा। HUL ने एक और टाटा कंपनी, लैक्मे लिमिटेड की 50% हिस्सेदारी खरीदी। आगे चलकर 1998 में लैक्मे पूरी तरीके से HUL का ब्रांड हो गया। मौजूदा समय में HUL अपने टेकओवर्स और मर्जर की बदौलत अलग-अलग कैटेगरी के 50 से अधिक ब्रांड्स की मालिक है।
भारत में सफल होने के पीछे का बिजनेस मॉडल
हिंदुस्तान यूनिलीवर का बिजनेस मॉडल आम जनता के जीवन को टिकाऊ बनाने के विचार से प्रेरित है। इसका ब्यूटी और पर्सनल केयर सेगमेंट कंपनी को सबसे अधिक प्रॉफिट देता है। जबकि इसका फूड और रिफ्रेशमेंट सेगमेंट कंपनी का सबसे तेजी से बढ़ने वाला सेगमेंट है। भारत में HUL के सफल होने का मुख्य कारण है- अन्य विदेशी सहायक कंपनियों के विपरीत, देश के लोअर और लोअर मिडिल क्लास पर ध्यान केंद्रित करना।
विवादों से कई बार चर्चा में रही HUL
तमिलनाडु के कोडाइकनाल में हिंदुस्तान यूनिलीवर की एक थर्मामीटर फैक्ट्री थी। 2001 में इस फैक्ट्री पर मरक्यूरी से कोडाइकनाल झील को दूषित करने का आरोप लगा। कुछ ही महीनों में स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों और ग्रीनपीस के विरोध के कारण फैक्ट्री बंद हो गई। जल्द ही कंपनी ने भी 2002 में आई अपनी एक रिपोर्ट में स्वीकार किया कि उसने मरक्यूरी वेस्ट को डंप किया था।
आज हिंदुस्तान यूनिलीवर की "ग्लो एंड लवली"(पहले फेयर एंड लवली) भारत में स्किन लाइटनिंग क्रीम की टॉप ब्रांड है। लेकिन कंपनी को अपने इस प्रोडक्ट के लिए कई विवादों का सामना करना पड़ा। 2007 में टेलीविजन विज्ञापनों में उदास, काले रंग की महिलाओं को चित्रित किया गया था, जिन्हें पुरुषों द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया था। पूरे भारत में इसकी आलोचना की गई थी जिसके बाद इसे बंद करना पड़ा। कई सालों तक क्रीम और कंपनी विवादों में रही। विवादों को कम करने के लिए 2020 में जाकर कंपनी ने ब्रांड से फेयर शब्द को हटाते हुए, क्रीम का नाम फेयर एंड लवली से ग्लो एंड लवली कर इसे रीब्रांड किया।
साल 2019 में होली पर सर्फ एक्सल के एक एड को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल मच गया था। एड के जरिए हिन्दू और मुस्लिम में भाईचारे का संदेश देने की कोशिश करने के चक्कर में कंपनी को बुरी तरह ट्रोल किया गया था और ब्रांड को बॉयकाट करने की मांग की गई थी। इतना ही नहीं सर्फ एक्सल के एड को लव जिहाद का समर्थन करने वाला बताया गया था। हालांकि कंपनी ने विवाद के बाद भी इस एड को नहीं हटाया था।
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