पाएं अपने शहर की ताज़ा ख़बरें और फ्री ई-पेपर
डाउनलोड करेंक्या आप जानते हैं कि भारत, दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से है जहां वनक्षेत्र यानी फॉरेस्ट कवर साल-दर-साल बढ़ रहा है।
ग्लोबल वॉर्मिंग के दौर में सिकुड़ते जंगलों की खबरों के बीच आपको ये बात राहत भरी लग सकती है…लेकिन क्या आप जानते हैं कि बहुत संभव है सरकारी मैप के मुताबिक आप भी जंगल में रह रहे हैं।
अगर आपकी समझ में नहीं आया तो ये आपकी गलती नहीं है। दरअसल, जंगलों पर सरकारी नीति की गुगली ही ऐसी है।
2001 से लागू नीति के मुताबिक अब किसी भी एक हेक्टेयर के क्षेत्र में अगर 10% हिस्से में पेड़ लगे हुए हों तो वो ‘जंगल’ मान लिया जाता है।
इस नीति का फायदा ये है कि 2004 में भारत के कुल एरिया के 20.60% इलाके में फॉरेस्ट कवर था…और 2019-20 में ये बढ़कर 21.71% हो गया।
सबसे ज्यादा वनक्षेत्र मध्य प्रदेश में है। ये बात अगर सिर्फ असली जंगलों की गणना के आधार पर कही जाती तो भी सच ही होती…लेकिन गणना के सरकारी तरीके की वजह से मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का बड़ा रिहायशी इलाका भी जंगलों में गिना जा सकता है।
जानिए, फॉरेस्ट कवर के नाम पर सड़क किनारे लगे पेड़ों को गिनने का हमारे जंगलों को क्या नुकसान हो रहा है और कैसे इन आंकड़ों में नुकसान दिखता तो है, मगर बताया नहीं जाता।
सबसे पहले देखिए सरकारी आंकड़े आखिर क्या कहते हैं
सिर्फ एक साल में दिल्ली से भी बड़े साइज का जंगल भारत में बढ़ गया
जनवरी, 2023 में केंद्र सरकार ने पर्यावरण से जुड़े आंकड़ों की रिपोर्ट EnviStats India जारी की। इस रिपोर्ट में देश के फॉरेस्ट कवर का भी राज्यवार विवरण दिया गया है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक 2017-18 में भारत का कुल फॉरेस्ट कवर 7,12,249 वर्ग किमी. था। एक ही साल यानी 2019-20 में यह फॉरेस्ट कवर 7,13,789 वर्ग किमी. हो गया। यानी 1540 वर्ग किमी. जंगल एक साल में बढ़ गए।
दिल्ली राज्य का क्षेत्रफल 1484 वर्ग किमी. है। अगर सरकारी आंकड़े सही हैं तो एक ही साल में भारत में दिल्ली के साइज से भी बड़ा जंगल बढ़ गया।
2004 में यह फॉरेस्ट कवर 6,90,171 वर्ग किमी. ही था। 2020 तक यानी 16 साल में यह 23,618 वर्ग किमी. बढ़ गया। मेघालय राज्य का क्षेत्रफल 22,429 वर्ग किमी. है।
यानी 16 साल में मेघालय के साइज से बड़ा जंगल भारत में खड़ा हो चुका है।
इस रिपोर्ट में ये आंकड़े हर दो साल में जारी होने वाली इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के हवाले से दिए गए हैं।
अब समझिए, कैसे इन आंकड़ों के बीच कड़वी सच्चाई छुपी है
सबसे तेजी से ओपन फॉरेस्ट एरिया बढ़ा है, मॉडरेट फॉरेस्ट घट गए…यही भारत के असली जंगल
देश में जंगलों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। सबसे घने जंगलों को वेरी डेंस फॉरेस्ट (VDF), कम घने वनों को मॉडरेटली डेंस फॉरेस्ट (MDF) और इससे भी कम घने जंगल को ओपन फॉरेस्ट (OF) कहा जाता है।
फॉरेस्ट कवर के आंकड़ों में अलग-अलग कैटेगरी के जंगलों का आंकड़ा भी दिया गया है। इसे देखें तो समझ में आता है कि भारत के कुल फॉरेस्ट कवर का 42.99% हिस्सा MDF का है…और यही हिस्सा लगातार घट रहा है।
इसके मुकाबले ओपन फॉरेस्ट बहुत तेजी से बढ़े हैं। खास बात ये है कि वनों की नई परिभाषा में जो नए इलाके ‘जंगल’ बने हैं, वो ओपन फॉरेस्ट की श्रेणी में ही आते हैं। ऐसे में इसका बढ़ना तय ही है।
अब समझिए, जंगलों की परिभाषा बदलने से फर्क क्या पड़ता है
UP के आम के बगीचे हों या आसाम के चाय बागान…सरकारी मैप पर सब जंगल हैं
जंगलों की नई परिभाषा के तहत 2001 से सरकार उन सभी इलाकों को जंगल में गिन लेती है जहां एक हेक्टेयर के 10% पेड़ लगे हों।
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये पेड़ कौन से हैं, किसी ने उगाए हैं या नैचुरल ग्रोथ है। जिस जमीन पर लगे हैं उसका इस्तेमाल क्या हो रहा है, उसका मालिकाना हक किसका है, ये भी नहीं देखा जाता।
इसका नतीजा ये है कि असम के चाय बागान हों या उत्तर प्रदेश में आम के बड़े बगीचे, या फिर दक्षिण के राज्यों में नारियल के प्लांटेशन…ये सभी अब जंगलों में गिने जाते हैं। यहां तक कि शहरों के उन रिहायशी इलाकों को भी जंगल में गिना जा सकता है जहां 10% से ज्यादा हिस्से में पेड़ लगे हों।
पहले वन विभाग की तरफ से जंगलों का सर्वे किया जाता है जिसमें सिर्फ उसी भूभाग को जंगल के तौर पर गिना जाता था जहां नैचुरल ग्रोथ हो और उसका मालिकाना हक किसी निजी व्यक्ति का न हो।
मगर अब ऐसा नहीं होता। सरकार ने जंगलों की ये परिभाषा 2001 में बदली है। इसका नतीजा उस समय के सर्वे में ये हुआ था कि 1999 से 2001 की गणना के बीच भारत में केरल के क्षेत्रफल के बराबर जंगल बढ़ गए थे।
प्लांटेशन का वो फायदा नहीं जो जंगल देते हैं…इनमें पानी का दोहन भी ज्यादा
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि पेड़ों की गिनती करना बुरा नहीं है, लेकिन इन्हें भी जंगल में गिनना गलत है। सरकार चाहती तो इन सभी क्षेत्रों को एक अलग कैटेगरी में गिन सकती थी, लेकिन इन्हें जंगल में ही गिना जा रहा है।
दरअसल, जंगल में पेड़ों की प्रजातियां प्राकृतिक रूप से बढ़ती हैं। इससे पूरे इलाके में बायोडायवर्सिटी आती है। इस डायवर्सिटी की वजह से ही यहां कीड़ों से लेकर जानवरों तक की अलग-अलग प्रजातियां बसती हैं।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारत के ग्रासलैंड्स को माना जाता है। जो परिभाषा के मुताबिक ज्यादातर जगहों पर मॉडरेटली डेंस फॉरेस्ट में आते हैं।
जबकि सरकार जिन बगीचों को जंगलों के तौर पर गिन रही है, वे कॉमर्शियल उद्देश्य से लगाए जाते हैं। किसी एक इलाके में एक ही तरह के पेड़ लगाए जाते हैं। जैसे यूकेलिप्टस के प्लांटेशन में सिर्फ यूकेलिप्टस के ही पेड़ होंगे।
इन प्लांटेशन्स में न तो बायोडायवर्सिटी होती है और न ही यहां प्राकृतिक तौर पर विभिन्न प्रजातियां एक साथ आ पाती हैं। यही नहीं, इन प्लांटेशन्स में पानी का दोहन ज्यादा होता है। यह भूजल को रीचार्ज करने का काम नहीं करते हैं।
जिन राज्यों में जंगल ज्यादा…वहां नुकसान भी ज्यादा
सरकार की रिपोर्ट ही बताती है कि जिन राज्यों के कुल क्षेत्रफल में जंगल की हिस्सेदारी ज्यादा है, वही सबसे ज्यादा जंगल गंवाने वालों में हैं।
पूर्वोत्तर के ज्यादातर राज्यों में क्षेत्रफल का 70% से ज्यादा हिस्सा जंगल है। सरकारी गणना में यही राज्य हैं जहां फॉरेस्ट कवर सबसे ज्यादा घटा है।
इसकी वजह भी साफ है। इन राज्यों में प्लांटेशन के नाम पर मिलने वाले बगीचे कम हैं और इनकी गुंजाइश भी कम है। जबकि इंसानी दोहन के चलते असली जंगल लगातार घट रहे हैं। प्लांटेशन्स न बढ़ने की वजह से इन राज्यों में घटते जंगलों की असली तस्वीर सामने आती है।
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.