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  • The Taliban Has Declared That Women In Afghanistan Can't Travel More Than 45 Miles By Road Without Being Accompanied By A Close Male Relative.

बात बराबरी की:मर्दों की सोच देखिए... सांप का फन चूमने से भले जान बच जाए, लेकिन औरत के फेर में पड़े तो बचना नामुमकिन

नई दिल्लीएक वर्ष पहलेलेखक: मृदुलिका झा
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पश्चिमी इंग्लैंड में कॉर्नवाल नाम की एक जगह है। अटलांटिक महासागर से घिरे इस प्रांत में शायद ही कोई पेड़ दिखे। असल में वहां हवा इतनी तेज बहती है कि घर बैठे आदमी के कान सनसनाएं। बेहद घनी झाड़ियों और सफेद फुनगियों वाले इस कॉर्नवाल में जब बस पहुंची तो रात के यही कुछ 11 बजे होंगे।

मैप के मुताबिक 5 मिनट के वॉक पर मेरा ठिकाना था। चौड़ी सड़क रोशनी में नहाई हुई, लेकिन सूनी। पीठ पर वजन लादे और सांय-सांय करती बर्फ को काटती यूथ हॉस्टल पहुंची तो जो रूम मिला, वहां लड़के ही लड़के।

बंक बेड बने हुए थे। चेहरे का भुच्च देहाती डर देखकर बस इतनी छूट मिली कि मुझे ऊपर का बेड दे दिया। बैग रखा और मिनटों में आंखें बंद हो गईं। आने वाले दिनों में दुनियाभर के लोगों से मिली। हर मुलाकात दिमाग की खिड़कियां-किवाड़ खटखटाती, बल्कि लगभग तोड़ती हुई। इन्हीं तजुर्बों ने सिखाया कि न तो हर काला साया भूत होता है, और न ही सफेद दिखती हर चीज फरिश्ता।

मैं खुशकिस्मत थी, जो मुझे अकेले दुनिया नापने का मौका मिला, लेकिन सारी औरतों की किस्मत इतनी चमकीली नहीं। हाल में तालिबानी सरकार ने पहले से ही जंग खाई जनाना किस्मत में थोड़ा और काला रंग पोत दिया। नए नियम के अनुसार अकेली महिलाएं 45 किलोमीटर तक का ही सफर तय कर सकेंगी।

इससे लंबी यात्रा के लिए उन्हें पति, पिता या भाई का साथ चाहिए। यानी, औरतें बेटिकट भले सफर कर लें, लेकिन बे-मर्द नहीं कर सकतीं। अकेले फिरने की हिमाकत करनेवालियों के लिए कोड़े-तोड़े जैसी कई चटपटी सजाओं का नियम है।

तमाशे में जान डालते हुए ये रूल भी आया कि लड़कियां बस में हों तो कोई फिल्मी गाना नहीं बजेगा, वरना गाने के बोल सुनकर अच्छी-भली गिरस्थी वाले मर्द बेपटरी हो सकते हैं। कुल मिलाकर तालिबानी सरकार के दिमाग में स्त्री की तस्वीर इतनी जहरीली है कि सांप का फन चूमकर भले आदमी बच जाए, लेकिन औरतों के फेर में पड़ा आदमी मिनट भर में ही मुंह से फेन निकालते हुए दम तोड़ देगा।

तो औरतों को कैद किया जा रहा है- लबादों में कि देह का कोई कोना सूरज की धूप या मौसमी हवा न फांक सके। वो कैद हो रही हैं- घरों में कि दिमाग का कोई कोना सीलन से खाली न बचे।

बीते पौन साल में डॉक्टर औरतें दवाओं समेत अपनी डिग्रियां दफना चुकीं। होंठ-पलक संवारने वाली ब्यूटीशियन्स रंग-इत्र की पेटियां तहखानों में दबा चुकीं। पढ़ाने-वालियां किताबों से ऐसे छिटकती हैं, जैसे खिचड़ी से बीमार। अफगानिस्तान में 14 मिलियन औरतें तो हैं, लेकिन रसोई नाम की कब्र में बैठी अपनी-अपनी बारी का इंतजार करती हुई।

अफगानी औरतों से होते हुए थोड़ा पीछे फ्रांस की सैर को चलते हैं। साल 1740 की जुलाई को बरगंडी कस्बे में एक मजदूर माता-पिता की संतान जन्मी। जीन बैरेट नाम की इस लड़की का मन फूल-पत्तियों के विज्ञान में रमता था। 15 साल की उम्र में ही उसे लोग ‘हर्ब वुमन’ के नाम से जानने लगे। आसपास छान चुकी जीन के दिल में आया कि क्यों न दुनिया के हर हिस्से के पेड़-पौधों को देखा जाए!

संयोग से उसी समय फ्रेंच नौसेना सालभर के लिए दुनिया की सैर पर निकलने वाली थी। जीन ने खुद को पुरुष का रूप दिया और बैठ गई जहाज में। वो साथी मर्दों के बीच हंसती-बोलती और उन्हीं की तरह शौक फरमाती। हालांकि दक्षिणी-प्रशांत महासागर तक पहुंचते हुए जीन का भेद खुला और उसे वहीं पटक दिया गया। बाद में किसी तरह से वो फ्रांस पहुंच सकी।

आधे-अधूरे सफर में भी 16-साल की उस बच्ची ने दुर्लभ किस्म की 70 वनस्पतियां खोज निकालीं। ये बात अलग है कि इसका सारा श्रेय फ्रेंच नेवी ने खुद ले लिया। जीन तस्वीर में कहीं नहीं थीं। लगभग 230 सालों बाद इतिहासकार ग्लनिक रिडली ने अपनी किताब ‘द डिस्कवरी ऑफ जीन बैरेट’ में सारा भेद खोला।

उन्होंने लिखा- मुझे नहीं लगता कि जीन शोहरत चाहती थीं। वे बस साइंस से प्यार करती थीं, जिसका रास्ता घुमक्कड़ी से होकर जाता था। उस दौर में किसी औरत के ये शौक उसे बदचलनी बनाने और मौत की सजा दिलाने के लिए काफी थे। जीन मरी तो नहीं, लेकिन गायब जरूर हो गईं।

जीन अगर मर्द होती तो फ्रेंच नौसेना में शायद उसे सबसे शानदार केबिन मिलता। वापसी की दावतों में सबसे शानदार शराब परोसी जाती। वैज्ञानिक बैठकी में उनकी दलील आखिरी आवाज होती। लेकिन वो जीन थी। एक स्त्री। मरने के कई सौ सालों बाद जब सच खुला, तब दुनिया के पास उनकी एक तस्वीर ही बाकी थी। कोई दूसरी याद नहीं, बस, एक तस्वीर। वे कोलंबस का जनाना संस्करण थीं, जो मिलने से पहले ही खो गईं।

फास्ट फॉरवर्ड टु 2022... हॉस्टल और होम-स्टे देने वाले नेटवर्क जॉस्टल के मुताबिक देश में अब नया चलन है, जिसमें 80% से ज्यादा महिलाएं सोलो ट्रिप पसंद करती हैं। मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिसटिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लिमेंटेशन भी इस बात पर मुहर लगाती है।

इसे पढ़ने के बाद पहली नजर में लगता है कि हम धरती के नए ही हिस्से में आ गए हैं, जहां लड़कियां तूफानी समंदरों से टकराने और बर्फीले पहाड़ों पर भटकने के लिए आजाद हैं। वे छुट्टा घूमेंगी और साबुत घर लौट आएंगी। हालांकि डेटा के पीछे अलग कहानी है।

इंटरनेट पर महिलाओं के लिए सोलो ट्रैवल टिप्स डालते ही धड़ाधड़ साइट्स खुलेंगी, जहां टिप्स के नाम पर 1 से लेकर 10वें नंबर तक सेफ्टी के ही नुस्खे दिखते हैं। क्या पहनें, कैसे दिखें, कैसे खाएं से लेकर कैसे बोलें जैसे तक तमाम टोटके हैं, जो लड़की को ट्रैवलर की बजाए सिर्फ शरीर बनाकर रख देते हैं।

वो गैर-मुल्क की गलियों में नहीं भटक सकती। उसे रात में कहवाघर जाने का हक नहीं। यहां तक कि किसी मुल्क का सूर्यास्त देखना चाहे तो साइट चीखेगी कि सूरज ढलने के बाद फलां जगह किस कदर खतरनाक है।

हमारे साथ कई पश्चिमी देश भी कदमताल करते हैं। अमेरीकी लेखिका क्रिस्टीन न्यूमैन ने घुमक्कड़ी पर एक किताब लिखी। ‘वॉट आई वाज़ डूइंग व्हाइल यू वर ब्रीडिंग’ में उन्होंने लिखा था कि कैसे किसी ऐतिहासिक इमारत को देखते हुए भी वे उसे एंजॉय नहीं कर सकीं, क्योंकि शोहदे उनके आगे-पीछे हुलहुला रहे थे। जब पुरुष ट्रैवलर कहवाघरों में गुल-गपाड़े करते होते, वे हाथों में मिर्च-पावडर का स्प्रे संभाले होटल भाग रही होतीं।

कल मकर संक्रांति बीती, वो त्योहार जिसके बाद दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं। कैलेंडर में ये दिन हर साल आता है। अब इंतजार है, उस कैलेंडर का, जहां औरतों की जिंदगी में भी संक्रांति आए। जब अंधेरा छंटे और रोशनी देर तक चलती रहे। वो रोशनी, जहां स्त्रियां सफर के लिए आजाद हों, जहां उनकी मुट्ठियां खौफ में कसी न हों, बल्कि तजुर्बों से हाथ मिलाने के लिए खुली हों।