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डाउनलोड करेंसरकार ने गन्ने का FRP (फेयर एंड रेम्यूनरेटिव प्राइस) 5 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा दिया। अब गन्ना किसानों को 290 रुपए प्रति क्विंटल का FRP मिलेगा। लेकिन अगर किसी किसान की रिकवरी 9.5% से कम होती है, तो भी उन्हें 275.50 रुपए प्रति क्विंटल जरूर मिलेंगे। यह जानकारी केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग और उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल ने दी।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि देश के गन्ना किसानों ने उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करके रिकवरी बढ़ाई है। उनका कहना है कि इससे पांच करोड़ गन्ना किसानों को फायदा होगा। उन्होंने कहा कि चीनी मिलों और इससे जुड़े उद्यमों में लगभग पांच लाख वर्कर लगे हुए हैं। बढ़ी FRP अक्टूबर 2021 से शुरू होने वाले अगले मार्केटिंग सीजन के लिए है।
गोयल ने बताया कि शुगर सीजन 2021-22 में गन्ने की उत्पादन लागत 155 रुपए प्रति टन रही है। इस तरह 290 रुपए प्रति क्विंटल का FRP 10% के रिकवरी रेट के हिसाब से प्रॉडक्शन कॉस्ट से 87.1% ज्यादा है। उन्होंने कहा कि गन्ना किसानों को उनकी लागत पर आधे से ज्यादा रिटर्न दिलाया जा रहा है।
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि मौजूदा शुगर सीजन (2020-21) में चीनी मिलों ने 91,000 करोड़ रुपए से 2,976 लाख टन गन्ने की खरीदारी की है, जो ऑल टाइम हाई है। MSP पर धान की खरीदारी के बाद इसकी खरीदारी सबसे ज्यादा हुई है। उनके मुताबिक शुगर सीजन 2021-22 में चीनी मिलें 3,088 लाख टन गन्ने की खरीदारी कर सकती हैं। इससे गन्ना किसानों को एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की आमदनी होगी।
गोयल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार के फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि FRP पिछले साल 10 रुपए प्रति क्विटंल बढ़ाया गया था। उनके मुताबिक, गन्ने का मौजूदा FRP अब तक के सबसे ऊपरी स्तर पर पहुंच गया है। गन्ने का FRP बढ़ाए जाने से क्या एथनॉल की कीमतों में भी इजाफा होगा, इस सवाल के जवाब में गोयल ने कहा कि इसके लिए ऑयल कंपनियों ने एक मैकेनिज्म बनाया हुआ है।
उन्होंने कहा कि गन्ने के दाम में बढ़ोतरी का ज्यादा बोझ उपभोक्ताओं पर नहीं पड़े, इस बात का पूरा ध्यान दिया गया है। उन्होंने कहा कि इसके लिए चीनी मिलों को निर्यात और पेट्रोल में एथनॉल ब्लेंडिंग करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है। गोयल ने कहा कि ढाई से तीन साल में एथनॉल में पेट्रोल की ब्लेंडिंग 20% तक पहुंच सकती है।
क्या होता है FRP?
चीनी मिलों को किसानों से जिस न्यूनतम मूल्य पर गन्ना खरीदना होता है, वह फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस यानी FRP कहलाता है। यह दाम अनाजों के वास्ते सरकार की तरफ से तय किए जाने वाले मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) जैसा होता है।
किस साल गन्ने का FRP कितना होना चाहिए, यह कमीशन ऑफ एग्रीकल्चरल कॉस्ट एंड प्राइसेज यानी CACP तय करता है। इसके लिए CACP राज्य सरकारों से सलाह मशविरा करता है और शुगर इंडस्ट्री के एसोसिएशन से फीड बैक लेता है। इसके बाद CACP अपनी सिफारिश सरकार को भेजता है, जिसके आधार पर गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के तहत FRP तय किया जाता है।
किन आधारों पर तय होता है?
FRP तय करने में गन्ने की उत्पादन लागत, उससे चीनी की रिकवरी, वैकल्पिक फसलों से मिलने वाला रिटर्न और एग्री कमोडिटी का प्राइस ट्रेंड, उचित मूल्य पर उपभोक्ताओं की चीनी की उपलब्धता पर ध्यान दिया जाता है।
इसके अलावा यह भी देखा जाता है कि चीनी उत्पादकों का विक्रय मूल्य कितना है, रिस्क और प्रॉफिट के हिसाब से किसानों के लिए कितना मार्जिन पर्याप्त हो सकता है और गन्ने से मिलने वाले सह-उत्पादों की बिक्री से कितनी रकम निकल रही है।
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