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डाउनलोड करेंदेश में फरवरी महीने में रिटेल महंगाई घटकर 6.44% पर आ गई है। जनवरी 2023 में यह तीन महीनों के उच्च स्तर 6.52% और दिसंबर 2022 में 5.72% पर रही थी। तीन महीने पहले नवंबर 2022 में रिटेल महंगाई 5.88% थी। पिछले साल फरवरी 2022 में यह 6.07% रही थी।
दाल-चावल और सब्जियों के दाम कम होने से मिली मामूली राहत
खाने-पीने के सामान में मामूली बढ़ोतरी हुई है। वहीं दाल-चावल और सब्जियों की कीमतों में थोड़ी कमी आई है, जिसके चलते महंगाई दर में मामूली गिरावट देखने को मिली है। फरवरी 2023 में फूड इन्फ्लेशन 5.95% हो गई है, जो जनवरी में 5.94% थी।
लगातार दूसरे महीने इन्फ्लेशन RBI के अपर टॉलरेंस लेवल से ऊपर
लगातार दूसरे महीने इन्फ्लेशन भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 6% के अपर टॉलरेंस लेवल से ऊपर रही है। कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) के बास्केट में लगभग आधी हिस्सेदारी खाद्य पदार्थों की ही होती है। बीते महीने अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजार में गेहूं जैसे खाद्यान्न के भाव घटे हैं। सरकार ने सप्लाई भी बढ़ाई है। इसका असर भी रिटेल महंगाई के आंकड़ों पर पड़ा है।
खराब मौसम, रुपए में गिरावट का दिख सकता है असर
सोसायटी जनरल के अर्थशास्त्री कुणाल कुंडू ने कहा था कि अगली कुछ तिमाहियों तक महंगाई ज्यादा बढ़ने की संभावना नहीं है। लेकिन इसके कम होने की रफ्तार धीमी रहेगी। पिछले साल रुपए में 10% से ज्यादा गिरावट का असर भी महंगाई पर दिख सकता है।
रिजर्व बैंक की सख्त पॉलिसी में ढिलाई की संभावना नहीं
खाने की चीजें और एनर्जी को छोड़कर कोर इन्फ्लेशन में फिलहाल कोई कमी नजर नहीं आ रही है। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, फरवरी में ये 6% की सीमा से ऊपर ही रहेगी। इसके चलते RBI की मौद्रिक नीति में ढिलाई की संभावना नहीं है। ब्याज दरें और बढ़ सकती हैं।
महंगाई कैसे प्रभावित करती है?
महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है। उदाहरण के लिए, यदि महंगाई दर 7% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 93 रुपए होगा। इसलिए महंगाई को देखते हुए ही निवेश करना चाहिए। नहीं तो आपके पैसे की वैल्यू कम हो जाएगी।
महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है?
महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वह ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी।
इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी।
RBI कैसे कंट्रोल करती है महंगाई?
महंगाई कम करने के लिए बाजार में पैसों के बहाव (लिक्विडिटी) को कम किया जाता है। इसके लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) रेपो रेट बढ़ाता है। बढ़ती महंगाई से चिंतित RBI ने हाल ही में रेपो रेट में 0.25% इजाफा किया है। इससे रेपो रेट 6.25% से बढ़कर 6.50% हो गया है।
CPI क्या होता है?
दुनियाभर की कई इकोनॉमी महंगाई को मापने के लिए WPI (Wholesale Price Index) को अपना आधार मानती हैं। भारत में ऐसा नहीं होता। हमारे देश में WPI के साथ ही CPI को भी महंगाई चेक करने का स्केल माना जाता है।
भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक और क्रेडिट से जुड़ी नीतियां तय करने के लिए थोक मूल्यों को नहीं, बल्कि खुदरा महंगाई दर को मुख्य मानक (मेन स्टैंडर्ड) मानता है। अर्थव्यवस्था के स्वभाव में WPI और CPI एक-दूसरे पर असर डालते हैं। इस तरह WPI बढ़ेगा, तो CPI भी बढ़ेगा।
रिटेल महंगाई की दर कैसे तय होती है?
कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मैन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 299 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।
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