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पिछले साल सीमा पर तनाव के चलते कूटनीतिक संबंधों में खटास आने के बावजूद चीन भारत का सबसे बड़ा बिजनेस पार्टनर बना रहा। ऐसा इसलिए हुआ कि भारत में हेवी मशीनरी की जरूरत का बड़ा हिस्सा आयात से पूरा होता है। कॉमर्स मिनिस्ट्री के प्रोविजनल आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में दोनों देशों के बीच 77.7 अरब डॉलर का व्यापार हुआ जो 2019 में 85.5 अरब डॉलर का था।
दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार रहा अमेरिका
पिछले साल भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार अमेरिका रहा है। उसके साथ पिछले साल 75.9 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। इसकी वजह कोविड-19 के चलते अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सुस्ती रही। पिछले साल चीन से कुल 58.7 अरब डॉलर का इंपोर्ट हुआ जो अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) दोनों से हुए आयात से ज्यादा था। संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है।
चीन से हुए आयात में हेवी मशीनरी का हिस्सा 51% था
सरकार ने पिछले साल दर्जनों चीनी ऐप को बैन कर दिया था और पड़ोसी मुल्क से आने वाले निवेश के प्रस्तावों की स्क्रूटनी बढ़ा दी थी। लेकिन, स्वदेशी सामानों का प्रयोग बढ़ाने के नारों के बीच चीन की हेवी मशीनरी, टेलीकॉम इक्विपमेंट और होम अप्लांयसेज पर भारत की निर्भरता बनी रही। पिछले साल चीन से हुए आयात में हेवी मशीनरी का हिस्सा 51% था। चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा पिछले साल रिकॉर्ड 40 अरब डॉलर पर पहुंच गया।
चीन को निर्यात में पिछले साल हुई 11% की बढ़ोतरी
जहां तक चीन को निर्यात की बात है तो पिछले साल उसमें 11% की बढ़ोतरी हुई। 2020 में पड़ोसी मुल्क को 19 अरब डॉलर का निर्यात किया गया था। ऐसे में अगर आगे कभी दोनों देशों में तनाव बढ़ा तो भारत को निर्यात से होने वाली कमाई में कमी आएगी।
मैन्यूफैक्चरिंग क्षमता बढ़ाने की महत्वाकांक्षा को ठेस लगी
चीन से रिश्तों के तनावपूर्ण होने से मैन्यूफैक्चरिंग क्षमता बढ़ाने की भारत की महत्वाकांक्षा को भी ठेस लगी है। दरअसल, ताइवानी कंपनियों को यहां फैक्ट्रियां लगाने में मदद के लिए चीन के जिन इंजीनियरों की मदद की जरूरत है, उनको वीजा मिलने में देरी हो रही है। ताइवानी कंपनियां लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए प्रॉडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव प्लान (PLI) के तहत फैक्ट्रियां लगा रही हैं।
चार-पांच साल तक बनी रहेगी चीन पर भारत की निर्भरता
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश के विशेषज्ञ अर्थशास्त्री अमितेंदू पालित के मुताबिक, चीन पर निर्भरता घटाने के लिए भारत को अभी बहुत कुछ करना है। उन्होंने कहा, ‘PLI स्कीमों के जरिए चुनिंदा सेक्टर में मजबूत उत्पादन क्षमता हासिल करने में कम से कम चार से पांच साल लगेंगे। तब तक चीन पर भारत की निर्भरता बनी रहेगी।’
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