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कोविड-19 महामारी के चलते अनिश्चितता और कारोबारी बाधा के कारण भारतीय कारोबार में भविष्य में फ्रॉड केस बढ़ने का डर पैदा हो गया है। डेलॉय टच तोहमात्सू LLP (DTTILLP) की ओर से किए गए द्विवार्षिक 'द इंडिया कॉरपोरेट फ्रॉड परसेप्शन सर्वे' में यह बात सामने आई है। सर्वे में शामिल 80% से ज्यादा उत्तरदाताओं ने महसूस किया है कि अगले दो साल में फ्रॉड केस में बढ़ोतरी होगी। 2018 में किए गए पिछले सर्वे के मुकाबले इसमें 22 पॉइंट की बढ़ोतरी हुई है।
70% ने माना- फ्रॉड में होने वाला नुकसान बढ़ेगा
सर्वे में 70% उत्तरदाताओं ने माना कि फ्रॉड के दौरान होने वाले नुकसान में बढ़ोतरी होगी। वहीं, एक तिहाई का मानना है कि फ्रॉड में होने वाला रेवेन्यू नुकसान 1 से 5% के बीच बढ़ जाएगा। बड़े पैमाने पर रिमोट वर्किंग की व्यवस्था और कारोबारी मॉडल में बदलाव के कारण यह प्रतिकूल सेंटिमेंट पैदा हुआ है। इसने धोखाधड़ी से जुड़ी कमजोरियों को समझना चुनौतीपूर्ण बना दिया है। सर्वे के निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि इस तरह के प्रतिकूल सेंटिमेंट ने फ्रॉड रिस्क मैनेजमेंट (FRM) के डाटा पर निर्भरता बढ़ा दी है।
भविष्य के फ्रॉड को पहचानने में अयोग्य है मौजूदा फ्रेमवर्क
सर्वे में शामिल 43% उत्तरदाताओं ने महसूस किया कि भविष्य के फ्रॉड को पहचानने के लिए उनका मौजूदा रिस्क मैनेजमेंट फ्रेमवर्क अयोग्य है। 22% उत्तरदाताओं ने फ्रॉड की पहचान की तकनीक बढ़ाने के लिए बजट डायवर्ट करने का संकेत दिया। 17% ने फ्रॉड रिस्क मैनेजमेंट की प्रक्रिया थर्ड पार्टी को सौंपने का संकेत दिया। वहीं, 17% ने फ्रॉड रोकने के लिए कर्मचारियों के बीच जागरूकता पैदा करने की बात कही।
डाटा एनालिटिक्स और अन्य तकनीकी उपकरणों से करेंगे फ्रॉड की पहचान
सर्वे के चार एडिशन में से 2020 में पहली बार करीब 35% उत्तरदाताओं ने भरोसा जताया कि डाटा एनालिटिक्स और अन्य तकनीकी उपकरणों के जरिए भविष्य के फ्रॉड की पहचान कर पाएंगे। भविष्य के फ्रॉड को रोकने में तकनीक की अहम भूमिका की वास्तविकता जानने के बावजूद 5% उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने पिछले 6 महीने में एंटी-फ्रॉड तकनीक पर कोई निवेश नहीं किया है।
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